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________________ ३८२ आप्तवाणी-२ वह फादर का अंतरआशय नहीं समझ सकता है। फादर और बेटे में मात्र पच्चीस ही सालों का डिफरन्स है, फिर भी बाप का अंतरआशय बेटा नहीं समझ पाता, तो फिर कृष्ण भगवान को गए तो पाँच हज़ार साल हो गए, तो पाँच हज़ार साल के डिफरेन्स में कृष्ण भगवान का अंतरआशय कौन समझ सकेगा? उनका अंतरआशय कौन बता सकेगा? वह तो जो 'खुद' कृष्ण भगवान हैं, वे ही बता सकते हैं! महावीर के अंतरआशय की बात कौन बता सकता है? वह तो जो खुद महावीर हैं, वे ही बता सकते हैं। महावीर का भी २५०० साल का डिफरेन्स हो चुका है। पहले के जमाने में तो पच्चीस साल के डिफरेन्स में बाप का अंतरआशय बेटा समझ जाता था, जबकि आज तो पच्चीस साल के अंतर में अंतरआशय समझने की शक्ति नहीं रही है, तो फिर कृष्ण की बात किस तरह समझ में आएगी? अभी गीता के बारे में बहुत कुछ लिखा जा रहा है, लेकिन लिखनेवाला उसमें से एक बाल बराबर भी नहीं समझता। यह तो ऐसा है कि अंधे को मिला अंधा, बोरे में मिला तिल से तिल, न रहा तिल न ही रही घाणी! उसके जैसा है। हाँ, वह गलत नहीं है, करेक्ट है, लेकिन वह बात फर्स्ट स्टेन्डर्ड के मास्टर जैसी है और वह ठीक है। यहाँ हमारे पास कैसी बात होती है? कॉलेज के अंतिम साल की बात है। जैसे उसमें फर्स्ट स्टेन्डर्ड की बात होती है, वैसे ही इसमें गीता के विवेचन की बात होती है। सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' के पास ही सर्व शास्त्रों की यथार्थ बात मिल सकती हैं। अर्जुन को विराट दर्शन प्रश्नकर्ता : कृष्ण भगवान ने अर्जुन को विश्वदर्शन करवाया था, वह क्या है? दादाश्री : वह विश्वदर्शन, वह आत्मज्ञान नहीं है। ये कितने सारे जन्म लेते हैं और मर जाते हैं, फिर जन्मते हैं, ऐसे कालचक्र में सभी खपते रहते हैं, इसलिए कोई मारनेवाला नहीं है, कोई जिलानेवाला नहीं है, इसलिए हे अर्जुन, तुझे जो मोह है, मार देने का-वह गलत है, उसे छोड़ दे। कृष्ण ने
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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