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________________ ३७० आप्तवाणी-२ है, वहाँ ज़रूर भाव प्रतिक्रमण करते हैं ! प्रतिक्रमण तो, दाग़ पड़ते ही तुरंत खुद धो डाले, तब कुछ किया कहा जाएगा! ये तो अंदर का दाग़ तभी नहीं निकाल देते, उस दाग़ को पक्का होने देते हैं। बाद में धोने जाओगे तब दाग़ क्या आपकी राह देखकर बैठा रहेगा? नहीं, वह दाग़ तो पड़ ही जाएगा! किसी से ऊँची आवाज़ से बोले और सामनेवाले को दुःख हो जाए तो भीतर प्रतिक्रमण कर लेना पड़ेगा। क्योंकि वह अतिक्रमण हुआ, उस अतिक्रमण का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। प्रतिक्रमण की यथार्थ विधि प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण में क्या करना होता है? दादाश्री : मन-वचन-काया का योग, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म, चंदूलाल और चंदूलाल के नाम की सर्व माया से भिन्न ऐसे 'शुद्धात्मा' को याद करके कहना कि, 'हे शुद्धात्मा भगवान! मुझसे ऊँची आवाज़ में बोला गया वह भूल हुई, इसलिए उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ और अब वापस वह भूल नहीं करूँगा ऐसा निश्चय करता हूँ, वह भूल वापस नहीं करने की शक्ति दीजिए।' शुद्धात्मा को याद किया या दादा को याद किया और कहा कि 'यह भूल हो गई,' तो वह आलोचना है, और उस भूल को धो डालना, वह प्रतिक्रमण है। और वह भूल फिर नहीं करूँगा ऐसा निश्चय करना, वह प्रत्याख्यान है! सामनेवाले को नुकसान हो ऐसा करे या फिर उसे अपने द्वारा दुःख हो जाए, वह सब अतिक्रमण हैं और उसका तुरंत ही आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करना पड़ता है। यह तो आसान मार्ग है, चाबियों से तुरंत ही ताले खुल जाते हैं! ऐसा संयोग अन्य किसी काल में नहीं मिलेगा, यह तो अक्रम मार्ग है! एक्सेप्शनल केस है ! ग्यारहवाँ आश्चर्य है! यहाँ काम निकाल लेना। ऐसे प्रतिक्रमण से लाइफ भी सुंदर गुज़रती है और मोक्ष में जाते हैं! भगवान महावीर ने ऐसा कहा है कि, 'आप अगर बहुत बड़े व्यापारी
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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