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________________ ३२८८ आप्तवाणी-२ शायद सभी जगह चित्त हाज़िर न भी रहे, अन्य कहीं पर चित्त गैरहाज़िर रहेगा तो चलेगा, लेकिन मात्र भोजन करते समय चित्त को हाज़िर रखना। प्रश्नकर्ता : ‘वर्क व्हाइल यू वर्क एन्ड प्ले व्हाइल यू प्ले' उसके जैसा, दादा? दादाश्री : ऐसे वाक्य फॉरेनवाले सहज लोगों के लिए हैं, विकल्पी के लिए नहीं हैं। ज्ञानी को तो 'वर्क व्हाइल यू वर्क एन्ड प्ले व्हाइल यू प्ले' रहता है, क्योंकि उनका बाहर का भाग और अंदर का भाग, दोनों ही सहज होते हैं। उनका चित्त तो कभी भी गैरहाज़िर नहीं रहता। इन्डियन्स के लिए तो यह वाक्य बेकार है, इसे रखकर क्या करना है? फिर भी हम कहते हैं कि मात्र भोजन करते समय चित्त को हाज़िर रखना। ऑफिस जाने के लिए ग्यारह के बदले सवा ग्यारह हो जाएँ तो 'दादा' को याद करना, कहना कि, 'दादा, आप कहते थे न कि भोजन करते समय चित्त हाज़िर रखना, लेकिन आज तो सवा ग्यारह बज गए हैं। मैं कुछ जानता नहीं। आप कहते हो वैसे चित्त की हाज़िरी में ही भोजन कर रहा हूँ, फिर आगे आप जानो।' तब फिर चित्त ठिकाने पर रहेगा और बॉस को जो कहना हो वह भले ही कहे और बॉस भी प्रकृति द्वारा नचाया जा रहा एक लटू ही है न? स्वसत्ता में आया ही नहीं है न वह! पुरुष बना ही नहीं न! जगत् पूरा ही, परसत्ता में ही है न! __ भोजन करते समय चित्त को हाज़िर रखना चाहिए, ताकि पता चले कि पकौड़ी में नमक ज़्यादा है या कम, मिर्च ज़्यादा है या कम! ये तो चित्त की गैरहाज़िरी में भोजन करते हैं तो पता ही नहीं चलता कि चाय गुड़ की है या चीनी की! अरे, अभी जो संयोग मिला है उसे अच्छी तरह भोग। यह तो सेठ भोजन यहाँ पर करता है और कारखाना सात मील दूर हो, तो वहाँ पहुँच चुका होता है। जो मिलता है, उसे हम सलाम करते हैं न! सात मील दूर हो उसे तो कोई अक़्लवाला भी सलाम नहीं करता। यह तो पैसा-पैसा, तो कुत्ते की मौत मरोगे, कषायों में मरोगे! एक
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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