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________________ ३१६ आप्तवाणी-२ पाए, तब। यह तो कच्चा काटने का हो, उसे उबाल देता है और उबालने का हो, उसे कच्चा काट देता है, तो कहाँ से एडजस्ट होगा? लेकिन एवरीव्हेर एडजस्ट होना चाहिए। कार्य का प्रेरक कौन? प्रश्नकर्ता : कार्य करने की प्रेरणा कौन देता है? दादाश्री : यह प्रेरणा तो पिछले जन्म के जो कॉज़ेज़ हैं, मात्र उनका इफेक्ट है। मन के विचारों से प्रेरणा होती है। जो कुछ भी कार्य होता है, वह शुद्धात्मा नहीं करता, प्रतिष्ठित आत्मा करता है। मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार अंत:करण के अंग हैं। जो सोच में पड़ जाए वह मन है। यहाँ पर बैठे-बैठे जो बाहर भटके, वह चित्त है। मन जो दिखाता है वह पेम्फलेट है और जो निश्चित करती है, वह बुद्धि है और जो हस्ताक्षर करता है, वह अहंकार है। अंत:करण के अनुसार बाह्यकरण बनता है, कोई प्रेरक है ही नहीं। जो-जो परमाणु इकट्ठे किए हैं, वैसे विचार छप जाते हैं, और वे ही परमाणु उदय में आते हैं। यदि खुद ही सोच सकते तो मनचाहे विचार ही आते लेकिन जैसे परमाणु भरे हैं, वैसे निकलते हैं। विचार संयोगों के अधीन है। माल भरते समय ही विचार करना चाहिए, सुविचार जो हितकारी हों, वे भरने चाहिए। भीतर कोई उल्टा विचार आए तो उसे घुसने ही मत देना, नहीं तो घर कर जाएगा। ऑफिस में कोई चोर जैसा आए, तो क्या उसे पूछते हैं कि, 'तू कौन है? तेरा व्यवसाय क्या है?' उसे तो घुसने ही नहीं देना चाहिए। यह तो किसी को लकवा हुआ हो और उससे मिलकर आएँ, तब विचार आता है कि 'हमें भी ऐसे लकवा हो जाएगा तो?' ये उल्टे विचार कहलाते हैं। इन्हें घुसने ही नहीं देना चाहिए। 'अपने' इस स्वतंत्र रूम में किसी को घुसने ही नहीं देना चाहिए। घुसने देना, वह खतरनाक है, उसी से तो संसार है, अनंत प्रकार के विचार आएँ तो कह देना कि, 'गेट आउट।' 'दादा' का नाम लोगे तो वे रुक जाएँगे। ये लुटेरे रात को शोर मचाएँगे तो क्या रात नहीं बीतेगी? यह तो टेम्परेरी है। रात बीत जाएगी। हम तो अनंत शक्तिवाले हैं।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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