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________________ मन ३०७ संसार पर कंटाला, वही राग दादाश्री : इस संसार पर कंटाला आता है? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तो वह राग है। जहाँ राग होता है वहीं पर कंटाला आता है, ऐसा संयोगानुसार होता है। यह कंटाला वगैरह सब मन के विचार हैं। हमें तो विचारों से कहना चाहिए कि, 'आओ, आपको जितना आना हो उतना आओ।' मन में से जो ये विचार आते हैं, वे तो भीतर स्टॉक भरा हुआ था, वह निकल रहा है और वह निकलता है तब निर्जरा (आत्मप्रदेश में से कर्मों का अलग होना) होती है। लेकिन निर्जरा कब होती है? कि हम शुद्धात्मा में रहें तब। जिनमें तन्मयाकार हो जाता है, वे कर्म गाढ़ हो जाते हैं। मन तो तरह-तरह का बताएगा, लेकिन हमें तन्मयाकार नहीं होना है। देखते रहना है कि ऐसा हुआ, वैसा हुआ। एक तरफ वैराग्य आता है और दूसरी तरफ राग होता ही है, तो कौन सी तरफ राग है, उसकी जाँच कर। इंसान जब बूढ़ा हो जाता है, तब विचार आता है कि अभी और जी पाऊँ तो अच्छा। यह सत्ता क्या उसके हाथ में है? ऐसे तो तरह-तरह के विचार आते हैं, उन्हें देखते रहना है और जानते रहना है। यह तो खुद अपनी ही मृत्यु स्वप्न में देखता है ! दुनिया बहुत अलग प्रकार की है! सभी तरफ वैराग्य आ जाए और 'ज्ञानीपुरुष' पर राग आए, तो उसके जैसा उत्तम तो कुछ भी नहीं है! वह राग तो सभी रोगों को टालनेवाला होता है। यह मनुष्य जन्म तो कैसा है? देवी-देवताओं द्वारा भी दर्शन करने योग्य है! देवी-देवताओं के लिए भी दुर्लभ है! लेकिन फल प्रकाश हो जाए तब! मन के रोग निकल जाएँ, तब प्रकाश होता है। मन के रोग लोगों को समझ में नहीं आते कि इस तरफ का मन रोगी है और इसके पासवाला मन तंदुरुस्त है। अगर मन तंदुरुस्त बने तो वाणी तंदुरुस्त बनती है और देह तंदुरुस्त बनती है। माइन्ड व्यग्र हो जाता है इसलिए एकाग्रता की दवाई लगाते हैं,
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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