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________________ ध्यान यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये सभी योग के अष्टांग हैं । यहाँ पर यह ज्ञान मिला इसलिए आपके लिए ये पूरे हो गए। उससे आगे आत्मा का लक्ष्य भी आपको बैठ गया है। अपने यहाँ तो देह को भी सहज रखना है और आत्मा को भी सहज रखना है। आपको आत्मा का अनुभव, लक्ष्य और प्रतीति रहा करेगी। प्रतीति से नीचे के स्टेज में आप कभी भी नहीं उतरोगे । - जगत् के लोग ध्यान में बैठते हैं, लेकिन क्या ध्येय निश्चित किया? ध्येय की फोटो देखकर नहीं आया है, तो फिर किसका, भैंसे का ध्यान कर रहा है? बिना ध्येय का ध्यान, वह अपध्यान है। भगवान ने शब्दआत्मा का ध्यान करने के लिए मना किया था । ध्यान तो किसे कहा जाता है? आत्मा के सारे ही गुण एट-ए-टाइम ध्यान में लेना । तो आत्मा के गुण वे ध्येय कहलाते हैं और ध्याता तू खुद बन जाए तो वह तेरा ध्यान कहलाता है। यह सब एट - ए - टाइम कुछ रहता होगा ? इन लोगों को समाधि की क्या ज़रूरत है? दिन को आधि में, रात को व्याधि में और विवाह में उपाधि में रहता है तो ये क्या देखकर समाधि माँग रहे हैं? प्रश्नकर्ता : ये जो श्वासोच्छ्वास पर ध्यान धरने को कहते हैं, उससे क्या होता है? दादाश्री : इसमें ध्यान करो कहते हैं, वह क्या है? नाक में से श्वास निकले उस पर ध्यान रखो, श्वास अंदर जाता है उस पर ध्यान रखो ! श्वास तो आता है और निकलता है, उस ध्यान का क्या करना है? उस नाक की नली का क्या करना है ? छोड़ो न । जब दमे का श्वास उठता है तब कर न ध्यान? तब तो वह कैसे कर पाएगा? यह तो कहेगा कि श्वास लिया
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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