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________________ २६२ आप्तवाणी-२ जिन्हें ढूँढ रहे थे, वह अनाड़ीपन तो आपको घर बैठे मिल रहा है। इसलिए इन 'दादा' ने आप से कहा है कि खाओ, पीओ, मज़े करो और जो तप आ पड़े उसे शांति से भुगतना। तप को तो बुलाने जाना पड़े ऐसा है ही नहीं। निरे तप में ही तपते हैं न ये लोग! और दूसरे प्रकार के तपवाले तो कैसे होते हैं कि आ पड़े तप को नहीं भुगतते और जो नहीं आया है उसे बुलाते रहते हैं। बुलाकर तप करते हैं। फिर हम उसे कुछ कहने जाएँ तो वह इतना अधिक तप चुका होता है कि यदि ज़रा सी भी भूल हुई तो वह फट पड़ता है। तपवाले कैसे होते हैं? तप्त होते हैं। तप्त मतलब सुलगते दबे हुए अंगारे, यदि ज़रा सी हमारी बीड़ी छू जाए कि तुरंत ही विस्फोट हो जाए। इसलिए भूल से भी वहाँ पर कुछ नहीं करना चाहिए। भगवान ऐसे नहीं थे, भगवान तो बहुत समझदार थे। प्राप्त तप की क्या अभी कोई कमी है? कुछ नहीं तो दाँत दुःखता है और दम निकल जाए ऐसा दुःखता है। दाढ़ दुःखती है, पेट दुःखता है, फलाँ दुःखता है, सामनेवाला टकराता है, ये सभी प्राप्त तप! वर्ना किसी दिन यदि सत्संग में से लौटते हुए देर हो जाए तो वाइफ कहेगी, 'आपका ठिकाना नहीं है। इतनी देर तक कहीं बाहर भटकते होंगे? कहाँ भटक रहे थे?' अब पत्नी क्या जाने कि आप सत्संग में बैठे थे या भटक रहे थे? अब वाइफ ऐसा बोले तब आप सीधे नहीं रहे तो अपनी मर्खता ही है न? हम जानते हैं कि आज तप में तपने का आया है! अब वहाँ यदि तप में नहीं तपो और पत्नी से कहो, 'चुप, एक अक्षर भी मत बोलना।' तब फिर पत्नी एक तरफ कारतूस भरती रहती है! 'बहन, किसलिए कारतूस भर रही हो?' तो कहती है, 'ये तो अभी फोडूंगी।' फिर भोजन के बाद बहन कारतूस फोड़ती रहती है। और रात को दोनों वापस वहीं के वहीं, उसी कमरे में सो जाते हैं! यदि दूसरे किसी कमरे में सो जाना होता तो हम जानें कि इस बला से छूटे, लेकिन बला के साथ में ही सोए रहना है वापस! अरे, जहाँ सोए रहना हो वहाँ पटाखे नहीं फोड़ते, कोई पटाखा फोड़े न और अपने पैर पर पड़े तो हमें उसे बुझा देना चाहिए। बाहर जो कुछ करना हो, वह करना लेकिन घर में जहाँ रात-दिन रहना हो, वहाँ ऐसा नहीं करते। ज्ञानी बहुत समझदार होते हैं, खुद का हित किसमें हैं वह
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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