SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयोग विज्ञान २५१ नुकसान वह किसकी सत्ता है? वह अपनी सत्ता नहीं है! हम लोगों को तो जिनसे सत्संग मिले वे ही संयोग पसंद करने योग्य हैं! अन्य सभी संयोग, वे तो संयोग ही हैं। अरे, सबसे बड़े तो रात-दिन साथ ही सोनेवाले संयोग, मन-वचन-काया के संयोग वे ही दुःखदायी हो पड़े हैं, तो फिर दूसरा कौन सा संयोग सुख देगा? हमें तो, ये संयोग छोड़ें ऐसा नहीं है, लेकिन वहाँ पर समभाव से निकाल करना है! इसमें कैसा है कि जैसेजैसे विपरीत संयोग बढ़ते हैं वैसे-वैसे यह ज्ञान अधिक विकसित हो ऐसा है। फिर भी, विपरीत संयोग खरीदकर लाने जैसा नहीं है, जो है उसका निकाल कर देना है। संयोग सुधारकर भेजो दादाश्री : कैसी है आपकी माता जी की तबियत? प्रश्नकर्ता : यों तो अच्छी है, लेकिन कल ज़रा बाथरूम में गिर गई थीं, बुढ़ापा है न? दादाश्री : संयोगों का नियम ऐसा है, कि कमज़ोर संयोग आएँ तब दूसरे कमज़ोर संयोग दौड़ते हुए आते हैं और यदि एक सबल संयोग मिले तो दूसरे सबल संयोग साथ में दौड़ते हुए आते हैं। यह बुढ़ापा, वह कमज़ोर संयोग है इसलिए उन्हें दूसरे कमज़ोर संयोग मिलते हैं, ज़रा धक्का लगे तो भी गिर जाते हैं, हड्डियाँ टूट जाती हैं। कमज़ोर के पीछे कमज़ोर संयोग आते हैं। यह तो जैसे-तैसे हल लाना है ! दुनिया के लोग कैसे होते हैं? जो भी कमज़ोर, दबा हुआ मिल जाए, उसे झिड़कते रहते हैं। भगवान ने कहा है कि, 'अरे, तू जितने दूसरों के संयोग बिगाड़ रहा है, उतने तू तेरे खुद के ही संयोग बिगाड़ रहा है। तो तुझे ही वैसे संयोग मिलेंगे।' संयोग तो फाइलें हैं और उनका समभाव से निकाल करना है। यह तो अनंत जन्मों से संयोगों का तिरस्कार किया है इसलिए अभी इस काल में लोगों को जहाँ-तहाँ तिरस्कार मिलता है, उसी तरह के संयोग मिलते हैं । संयोग तो व्यवस्थित के हिसाब के परमाणुओं से ही मिलते हैं। कड़वे लगें वैसे संयोगों को लोग धकेलते रहते हैं और उन्हें गालियाँ देते हैं। संयोग
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy