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________________ २४६ आप्तवाणी-२ दादाश्री : उनका तू नाम लेता है कभी? प्रश्नकर्ता : कभी-कभी लेता हूँ। दादाश्री : किस नाम से पुकारता है? प्रश्नकर्ता : भगवान के तो हज़ारों नाम हैं, किसी भी एक नाम से पुकार लेता हूँ। दादाश्री : तुझे कौन सा नाम पसंद है? प्रश्नकर्ता : श्री कृष्ण। दादाश्री : उनसे कह न कि आपने दुनिया बनाई तो ऐसी क्यों बनाई? आपकी क्या रानियाँ-वानियाँ भाग गई हैं या फिर सभी हैं? उनसे कह न कि किसलिए हमें द:ख दे रहे हो? हमें उन्हें डाँटना चाहिए, लेकिन हम लोग उन्हें डाँटते नहीं हैं और प्रसाद चढ़ाते रहते हैं, इसलिए वे समझते हैं कि ये सभी सुखी हैं! या फिर उन्हें बहरे कानों से सुनाई नहीं देता कि हम क्या कहना चाहते हैं? तो हमें उन्हें डाँटना पड़ेगा कि रानियाँ-वानियाँ भाग गई हैं? आपके बेटे-बेटियाँ भटक गए हैं या क्या? उनसे कहेंगे तब वे कहेंगे कि, 'नहीं, रानियाँ हैं।' तो हम कहें कि 'फिर यह सब ऐसा क्यों जलने लगा है? पूरा जगत् जल रहा है, और आप अकेले बगैर घर-बार के ऐसे भटकते रहते हो? रानियाँ लेकर आओ यहाँ पर।' ऐसा उन्हें कहना पड़ेगा। ऐसा नहीं कहेंगे तो किस तरह उन्हें बहरे कान से सुनाई देगा? इस तरह भगवान को डाँटना पड़ता है। यदि आपकी सच्ची भक्ति हो तो भगवान को क्यों नहीं डाँट सकते? और तभी भगवान आपकी सुनेंगे। लेकिन कोई डाँटता ही नहीं है न भगवान को? सभी प्रसाद चढ़ाते रहते हैं।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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