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________________ त्रिमंत्र विज्ञान नहीं, आत्मदशा साधे वे साधु । 'ऐसो पंच नमुक्कारो ' इन पाँचों को नमस्कार करता हूँ।‘सव्व पावप्पणासणो' - सर्व पापों का नाश करनेवाला है। ‘मंगलाणं च सव्वेसिं,' 'पढ़मं हवई मंगलम्' - सर्व मंगलों में सर्वोच्च यह प्रथम मंगल है। - २२५ भगवान ने सभी प्रकार के धर्म दिए हैं, मोक्ष का मार्ग दिया और शुभाशुभ का मार्ग भी दिया, उन्होंने अशुद्ध का मार्ग नहीं दिया। मंत्रों से कर्म हल्के हो जाते हैं । गाढ़ कर्म हल्के हो जाते हैं, लेकिन मंत्र बोलना भी एक एविडेन्स है। ज्ञानी मिलें, वे तो निमित्त होते हैं । यदि सभी परिवर्तन होनेवाला हो, तभी निमित्त मिलते हैं, ऐसा है । लेकिन कर्म किसी को छोड़ते नहीं हैं, यह तो, जब विघ्न टलनेवाला हो तभी वह निमित्त आ मिलता है और मंत्र में विघ्न टालने की शक्ति होती है। ये जो ब्राह्मण होते हैं, वे सभी ज्योतिष आदि देखकर बेटी की विवाह पत्रिका बनाते हैं, फिर देखते कि इसमें विधवा होने का आ रहा है इसलिए फिर टाइम बदल देते हैं, फिर भी वह लड़की विधवा होनेवाली होगी तो होगी ही। उसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकता । यह तो नींद में हो तब जाने देता है, जागता हुआ नहीं जाने देता, ऐसा है यह जगत् । आप तो जैन हो, तो नवकार मंत्र बोलते हो क्या? प्रश्नकर्ता : हाँ, रोज़ बोलता हूँ । दादाश्री : तो फिर परेशानियाँ मिट गई होंगी न? प्रश्नकर्ता : लेकिन संसार में परेशानियाँ तो होती ही हैं न? दादाश्री : जजमेन्ट जज के हाथ में होता या कारकून के हाथ में? प्रश्नकर्ता: जज का ही । दादाश्री : वह नवकार मंत्र भी जज जैसों का दिया हुआ होना चाहिए। नवकार मंत्र समझकर बोलते हो या पहचाने बिना बोलते हो? यदि घी की पहचान नहीं हो तो घी किस तरह से लाओगे? ये लोग तो घी के नाम पर दूसरा कुछ थमा देते हैं। मंत्र तो यदि 'ज्ञानीपुरुष' का दिया
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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