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________________ २२४ आप्तवाणी-२ दादाश्री : यदि ऐसा होता तब तो फिर भगवान महावीर ने गौतमस्वामी से पैंतालीस आगम नहीं लिखवाए होते और एक ही मंत्र देकर मुक्त हो जाते। नवकार मंत्र तो क्या करता है कि आपके आनेवाले विघ्नों को टालता है। सौ मन का पत्थर गिरनेवाला हो तो कंकड़ से ही विघ्न टल जाता है। प्रश्नकर्ता : क्या त्रिमंत्र बोलने से कर्म हल्के हो जाते हैं? दादाश्री : हाँ, मंत्र बोलने से कर्म हल्के हो जाते हैं, राहत मिलती है, क्योंकि शासन देवी-देवताओं की तरफ से सहायता मिलती है। लेकिन मंत्र तो मन-वचन-काया की एकाग्रता से बोलने चाहिए तभी फल देते हैं। ये लोग जब सो जाएँ, तब मन-वचन-काया की स्थिरता से विधि हो पाती है, लेकिन जब लोग जाग जाएँ तो भीतर अस्थिरता हो जाती है। ये तो उठते हैं तभी से स्पंदन खड़े होते हैं और आत्मा स्व-पर प्रकाशक है। इसलिए यदि नगीनदास उठ गए हों और वे हमें याद करें तो हमें भी वे याद आते हैं, क्योंकि तुरंत ही स्पंदन खड़े हो जाते हैं। इसीलिए तो लोग चार बजे विधि, मंत्र बोलने का नियम लेते थे न। प्रश्नकर्ता : दादा, नवकार मंत्र का अर्थ क्या है? दादाश्री : 'नमो अरिहंताणं' का मतलब क्या कि अरिहंत भगवान जिन्होंने क्रोध-मान-माया-लोभ रूपी दुश्मनों का नाश कर दिया है, फिर भी देह सहित यहाँ पर विचरते हैं, उन्हें नमस्कार करता हूँ। 'सिद्ध भगवान' को नमस्कार करता हूँ, जो मोक्ष में विराजे हुए हों, वे सिद्ध भगवान। सिद्ध भगवान और अरिहंत भगवान में कोई फर्क नहीं है। मात्र अरिहंत भगवान की देह है और सिद्ध भगवान विदेही हैं। तीसरा 'आचार्य भगवंतो' को नमस्कार। खुद संपूर्ण आत्मज्ञानी हैं और दूसरों को ज्ञानदान देते हैं, वे आचार्य भगवंत कहलाते हैं। फिर 'उपाध्याय भगवंतों' को नमस्कार। उपाध्याय यानी जिन्होंने खुद आत्मज्ञान प्राप्त किया है और अभी तक संपूर्ण होने के लिए खुद अभ्यास कर रहे हैं और दूसरों को उपदेश देकर अभ्यास करवाते हैं, वे। 'नमो लोए सव्व साहूणं' यानी इस लोक के सभी साधुओं को नमस्कार। लेकिन साधु कौन? ये गेरुआ या सफेद पहन लेते हैं वे?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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