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________________ संग असर २१७ ज़बरदस्ती दारू पिलाए तो नहीं पीने के लिए तायफा (जान-बूझकर किसी को परेशान करने के लिए किया गया फज़ीता,नाटक) करना पड़ता है। कह देना कि डॉक्टर ने मना किया है या फिर कहना कि घर में ही नहीं घुसने देंगे। इस तरह जैसे-तैसे करके उसे टाल देना चाहिए। कुसंग से तो दूर ही भले। वीतराग' भगवान कितने पक्के होंगे, वे समझ बूझ कर मुक्त हो गए। जिनसे धूप का दु:ख सहन नहीं होता, वे कीचड़ में पड़े हुए हैं। भगवान तो कहते हैं कि, 'यहाँ गर्मी में तपे तो भी अच्छा, कीचड़ में जा गिरा तब तो हो चुका!' तपा हुआ तो फिर कभी न कभी ठंडा होगा, लेकिन कीचड़वाला कब छूटेगा? एक बार कीचड़ में गिरा फिर तो कषायों का संग्रहस्थान खड़ा हो ही जाता है, लेकिन अगर धूप में तपे तो कषाय तो हल्के पड़ेंगे! यह तो, अगर किसी कीचड़ में पड़े हुए की संगत हो जाए, तब उससे तो अगर अपने कषाय कम हों, फिर भी सामनेवाले के कषाय अपने में आ जाते हैं। एक बार कीचड़ में गिरो तो फिर बहुत भारी प्रतिक्रमण कर देना चाहिए कि अब फिर से नहीं गिरूँगा। लेकिन वे मिथ्यात्वी के संग में पड़ा तब तो, वह कषायी होता है, और उससे अपने में कषाय खड़े हुए बिना रहेंगे? सत्संग निरंतर मारता रहे वह अच्छा, लेकिन कुसंग रोज़ाना दालचावल-लड्डू खिलाए तो भी काम का नहीं। एक ही घंटा कुसंग मिले तो कितने ही काल के सत्संग को जला देता है। इन जंगल के पेड़ों को बड़ा करने में पच्चीस साल लगते हैं, लेकिन उन्हें जलाने में कितनी देर लगती है? 'ज्ञानीपुरुष' तो कितना कर सकते हैं? रोज़ जतन करके जंगल में पौधे उगाते हैं और जतन करके बड़े करते हैं। उन्हें फिर सत्संग रूपी पानी पिलाते हैं। लेकिन कुसंग रूपी अग्नि को उन पौधों को जलाने में कितनी देर? सबसे बड़ा पुण्य तो कुसंग नहीं मिले, वह है। कुसंगी क्या अपने को ऐसा कहते हैं कि हमारे ऊपर भाव रखो? उनके साथ तो दूर से ही 'खिड़की में से ही जय श्री कृष्ण' कहना चाहिए। सच्चिदानंद संग क्या नहीं कर सकता? केवलज्ञान की प्राप्ति करवाता है!
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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