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________________ १९२ आप्तवाणी-२ को स्पर्श करता है, उतना ही झंझट है। फादर को हुआ हो तो हमें वह सिर पर नहीं लेना है। फिर भी खोज-खबर रखनी चाहिए कि क्या हुआ? कहाँ चोट लगी? फिर सभी दवाइयाँ वगैरह सब तुरंत ही ले आनी चाहिए, लेकिन ड्रामेटिक। यदि ड्रामेटिक नहीं होता तो बाप मरे, तब बेटे को भी साथ में जाना ही चाहिए न? ये मरते समय ड्रामा और जब चोट लगे उसमें 'ड्रामा' नहीं, ऐसा कैसे चलेगा? 'ज्ञानीपुरुष' किसलिए हमेशा आनंद में रहते हैं? क्योंकि सभी सेटिंग करनी आती है और वही आपको सिखलाते हैं। आपको यह आता नहीं है, इसीलिए तो आपने हमें यहाँ आसन पर बैठाया है! ये मास्टर जी होते हैं, वे बच्चे को दो सवाल गुणा के सिखलाते हैं और यदि वह बच्चों को नहीं आता तो उसे मारते हैं। घर में मास्टर बन न? लेकिन पत्नी के पास मास्टर नहीं बनता, नहीं तो पत्नी ही मारे! सत्ता का उपयोग करे वह मूर्ख सत्ता प्राप्त होने के बाद जो सत्ता चलाता है, वह मूर्ख कहलाता है। जो सत्ता का उपयोग करे, वह मूर्ख कहलाता है। सत्ता प्राप्त नहीं हुई हो तब तक भाव रहता है कि सत्ता का उपयोग करूँगा। लेकिन सत्ता प्राप्त हो जाए तो उसका उपयोग नहीं करना चाहिए। 'सत्ता का उपयोग करे तो वह मूर्ख कहलाता है,' हम ऐसा कहें तब उसका रोग निकल जाता है। अभी तक किसीने गाली नहीं दी है और कोई गाली देगा भी नहीं। उसके बिना रोग नहीं निकलेगा। बाहर तो 'आओ सेठ, आओ सेठ' ऐसा किसलिए कहते होंगे? कोई काम पड़ेगा न, इसलिए। ये कामवाले सभी! वह तो कोई निष्काम पुरुष हो और जब वे डाँटें तब काम होता है। ___ हमारे पास एक वकील आए थे, उन्हें तो हमने बेहिसाब डाँटा था। तब उसने अपने भाई के घर जाकर कहा कि, 'ऐसे करुणावाले व्यक्ति तो मैंने देखे ही नहीं!' ये लोग तो कैसे हैं कि इन्हें डॉक्टर, वकील वगैरह काम के हैं, लेकिन ये सब किस काम के? वह तो इतनी खिचड़ी मिल
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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