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________________ व्यवहारिक सुख-दुःख की समझ वह आ जाएगा तो? यह तो निरा दुःख बढ़ाता है । इसके बजाय तो यदि ऐसा विचार आए तो कहना कि 'तू बाहर जा ।' यह देह तो जानेवाली है, कभी न कभी तो जाएगी ही और वह 'व्यवस्थित' के अधीन है न? तो फिर उस विचार से दु:ख किसलिए? कितने कष्ट पड़े हैं वे देखने हैं, और कष्ट नहीं हैं तो रह न मस्ती में ! 'दादा, दादा बोलता न थाकूँ' - उसमें रह न ! १८७ भगवान ने कहा था कि जितने देह के कष्ट हैं, उतने को ही दुःख मानना, बाकी के सब दुःख, वे असल में दुःख नहीं हैं। जानवरों को दुःख क्यों नहीं है? क्योंकि उनका मन सीमित है। उनके लिए खाने का ले जाएँ तो गाय दौड़ती हुई आती है, खाना मिलेगा इसलिए । लकड़ी लेकर जाएँ तो भाग जाती है। इतना ही है उनका मन । लेकिन इसके अलावा है क्या उन्हें कोई और झंझट ? इस गायों को मन का चक्कर नहीं है, इसलिए उन्हें मन के दुःख नहीं हैं और उनका संसार तो अपने संसार जैसा ही है। यानी उन्हें अक़्ल नहीं फिर भी उनका चलता है तो फिर अपना क्यों नहीं चलेगा? और फिर ऊपर से हमारे पास मन का चक्कर है, वह अतिरिक्त, तो उसका लाभ लो न ! यह मन का चक्कर दुःखदायी कैसे हो सकता है? यदि दुःख के विचार आएँ तो सभी को डिसमिस कर दें और न हो तो अंत में उन्हें एक्सेप्ट न करें । जैसे इन गायों-भैंसों को कष्ट हैं, वैसे ही हमें भी कष्ट हैं, लेकिन उन्हें वाणी का झंझट नहीं है। हम गालियाँ दें तो उन्हें हर्ज नहीं है। उनका मन सीमित है और बुद्धि भी सीमित है । इन अतिरिक्त दुःखों को तो डिसमिस कर देना है। इन गायों - भैंसों को है कोई झंझट ? उनके बच्चों की शादी करवाने की है उन्हें कोई चिंता ? यह कैसा है कि फुल लाइट में बिच्छू घुसा तो फिर भीतर घबराहट और डर लगता रहता है । लेकिन यदि फुल लाइट को डिम कर दें तो फिर बिच्छू नहीं दिखेगा, वह फिर नहीं डरेगा । फुल लाइट को डिम किया जा सकता है, लेकिन डिम को फुल नहीं किया जा सकता। इन गायोंभैंसो का चल जाता है तो क्या अपना नहीं चलेगा? जिन्हें भान नहीं है,
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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