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________________ १८६ आप्तवाणी-२ यहीं पर कर्ज चुकाने आना पड़ेगा। इंसान है तो उसके सिर पर दुःख तो आएँगे ही, लेकिन उसके लिए कहीं आत्महत्या करते हैं? आत्महत्या के फल बहुत कड़वे हैं। भगवान ने उसके लिए मना किया है, बहुत खराब फल आते हैं। आत्महत्या करने का तो विचार भी नहीं करना चाहिए। ऐसा जो कुछ भी कर्ज़ हो तो वह वापस दे देने की भावना करनी चाहिए, लेकिन आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। दुःख तो रामचंद्र जी को था। उनके चौदह साल के वनवास के एक दिन का दु:ख, वह इस चिड़ियाँ(कमज़ोर इंसानों) की पूरी जिंदगी के दुःख के बराबर है! लेकिन अभागे 'चें-' करके सारा दिन दुःख गाते रहते हैं। सुख-दुःख तो निमंत्रित मेहमानों जैसे हैं, आएँ तब धक्का नहीं मार सकते बल्कि उनका तो सत्कार करना चाहिए। संसार, वह दुःख का सागर है। व्यवहार अच्छी तरह चलाने में किसी का डर नहीं होना चाहिए। धौल खाना पसंद नहीं हो, और यदि बहीखाता बंद करना हो तो धौल देते समय सोचना कि वापस आएगी, तब वह सहन की जा सकेगी या नहीं? तीन प्रकार के दुःख हैं। देह के दुःखों को 'कष्ट' कहते हैं, जिसे प्रत्यक्ष दु:ख कहते हैं। दाढ़ दु:खे, आँखें दुःखें या पक्षाघात हो जाए तो वे सभी दुःख, वे देह के दुःख हैं। दूसरे हैं वाणी के दुःख, उन्हें 'घाव' कहते हैं। हृदय में घुस जाएँ तो फिर जाते नहीं। और तीसरे मन के दु:ख, वे 'दुःख' कहलाते हैं। अपने को मन के दुःख या वाणी के घाव नहीं रहने चाहिए, लेकिन कष्ट तो आएँगे। जो भी सहन करना पड़ता है, वह सब कष्ट ही कहलाता है। लेकिन हमें ज्ञाता-दृष्टा पद में रहकर सहन करना चाहिए। लेकिन ये वाणी के घाव और मन के दुःख नहीं होने चाहिए। ये इन्कम टैक्स के ऑफिसर कहें कि आपके ऊपर इतना टैक्स लगा देंगे,' ऐसा बोलें तो वह तो टैप रिकॉर्ड है। इसलिए उस वाणी का घाव हमें नहीं लगना चाहिए। किसी को हार्टअटेक आया था, तब उसे छाती में दु:ख रहा था, तो कभी इन भाई को छाती में दुःखने लगे तो कहता है कि मुझे हार्टअटेक
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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