SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निज दोष १४९ रिलेटिव-पूर्णता तक पहुँचा जा सके, वैसा नहीं है। लेकिन हमें उसमें हर्ज नहीं है। क्योंकि भीतर अपार सुख बरतता रहता है! इस संसार में कोई भी आपका ऊपरी है ही नहीं, इसकी मैं आपको गारन्टी देता है। कोई बाप भी आपका ऊपरी नहीं है। आपकी भूलें ही आपकी ऊपरी हैं।' यदि 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तो आपकी भूलें मिटा दें। तू तेरी ही भूलों से बंधा हुआ है। यह तो मानता है कि 'इस साधन से मैं छूटने का प्रयत्न कर रहा हूँ,' लेकिन उसी साधन से तू बंधता है। एक-एक जन्म में यदि एक-एक भूल मिटाई होती तो भी मोक्ष स्वरूप हो जाते। लेकिन ये तो एक भूल मिटाते हुए पाँच नई भूलें बढ़ाकर आते हैं। यह बाहर सारा सुंदर और भीतर बेहद क्लेश, इसे भूल मिटाई कैसे कहेंगे? आपका ऊपरी तो कोई है ही नहीं ! लेकिन भूल दिखानेवाला चाहिए। भूलों को मिटाओ, लेकिन खुद की भूलों का खुद को पता कैसे चलेगा? और वे भी क्या एक-दो ही हैं? अनंत भूलें हैं! काया की अनंत भूलें हैं, वाणी की अनंत भूलें हैं। वाणी की भूलें तो बहुत बुरी दिखती हैं। किसी को भोजन के लिए बुलाने गए हों, तब ऐसा कठोर बोलता है कि बत्तीस व्यंजन के भोजन का आमंत्रण हो, तब भी पसंद नहीं आए। इसके बजाय नहीं बुलाते तो अच्छा होता, ऐसा भीतर होता है। अरे! चाय पिलाए, तब भी कर्कश वाणी निकलती है और मन के दूषण तो बेहिसाब होते हैं! ___भूलें तो कौन मिटा सकता है? 'ज्ञानीपुरुष,' कि जो खुद की सारी भूलें मिटाकर बैठे हैं। जो शरीर होने पर भी अशरीरी भाव से, वीतराग भाव में रहते हैं। अशरीरी भाव यानी ज्ञानबीज। सारी भूलें मिटाने के बाद, खुद का अज्ञान बीज नाश होता है और ज्ञानबीज पूर्णरूप से उगता है, वह अशरीरी भाव। जिसे किंचित् मात्र भी, ज़रा सी भी देह पर ममता है, तो वह अशरीरी भाव नहीं कहलाता, और देह पर से ममता जाए किस तरह? जब तक अज्ञान है, तब तक ममता जाती नहीं। दोषों का आधार प्रश्नकर्ता : दादा, सामनेवाले के दोष क्यों दिखते हैं?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy