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________________ निज दोष १४१ को मिटाने के लिए भूल को भूल कहना पड़ता है। उनका रक्षण नहीं करना चाहिए। इसे' 'ज्ञानीपुरुष' की चाबी कहते हैं। इससे कैसा भी ताला खुल जाता है। हम अपनी भूल से बंधे हुए हैं। भूल मिट जाए तब तो परमात्मा ही हैं! जिसकी एक भी भूल नहीं है, वह खुद परमात्मा ही है। ये भूलें क्या कहती है? 'तू मुझे जान, मुझे पहचान।' यह तो ऐसा है कि भूल को खुद का अच्छा गुण मानते थे। भूल का स्वभाव कैसा है कि वह हमारे ऊपर शासन चलाती है। लेकिन भूल को भूल जानें तो वह भाग जाती है। फिर खड़ी नहीं रहती, जाने लगती है। लेकिन यह तो क्या करते हैं कि एक तो भूल को भूल नहीं समझते और ऊपर से उसका रक्षण करते हैं। यानी भूल को घर में ही भोजन करवाते हैं। भूल का रक्षण प्रश्नकर्ता : दादा, भूल का रक्षण किस तरह किया जाता है? दादाश्री : यदि किसी को डाँटने के बाद हम कहें कि, 'हमने उसे नहीं डाँटा होता तो वह समझता ही नहीं। इसलिए उसे डाँटना ही चाहिए।' इससे तो वह 'भूल' समझ जाती है कि इस भाई को अभी तक मेरा पता ही नहीं चला है, और वापस मेरा पक्ष ले रहा है इसलिए यहीं खाओ, पीओ और रहो। एक ही बार यदि अपनी भूल का पक्ष लिया जाए तो उस भूल का दस साल का आयुष्य बढ़ जाता है। किसी भी भूल का पक्ष नहीं लेना चाहिए। हममें आड़ाई (टेढ़ापन) ज़रा सी भी नहीं होती। कोई हमें हमारी भूल बताए तो हम तुरंत ही एक्सेप्ट (स्वीकार) कर लेते हैं। कोई कहे कि यह आपकी भूल है, तो हम कहते हैं कि 'हाँ भाई, यह तूने हमें भूल बताई तो तेरा उपकार।' हम तो ऐसा समझते हैं कि जो भूल मुझे नहीं दिख रही थी, वह भूल उसने बता दी, इसलिए उसका उपकार। यदि रोज़ाना पच्चीस के करीब भूलें समझ में आएँ तो ग़ज़ब की शक्ति उत्पन्न हो जाएगी। यह भूल क्या है, वह समझ में आए उसके लिए हमने कहा है न कि,
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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