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________________ धर्मध्यान में हो? महावीर भगवान के ध्यान को तो पहचानो ! यह रौद्रध्यान कहलाता है। दूसरों के पास से थोड़ा, एक उँगली बराबर भी हड़प लेना, वह रौद्रध्यान कहलाता है। आपको इतना कहने का अधिकार है, कि ग्राहक पूछे कि, ‘इस टेरेलीन का क्या भाव है?' तो आप अट्ठारह के बदले साढ़े अट्ठारह कह सकते हो। लेकिन अट्ठारह कहने के बाद में आपको उसे नाप पूरा देना चाहिए, किंचित् मात्र भी कम नहीं। कम नहीं दिया गया हो और कम देने की भावना मात्र की, उसे भी रौद्रध्यान कहा है । कम देते समय भूल से वापस ज़्यादा भी चला गया होगा तो वहाँ कोई जमा करनेवाला नहीं है। सेठ लोगों ने नौकरों से कह रखा होता है कि, 'देख, यह अपने चालीस गज में इतना बचना चाहिए।' यानी उसने फिर अनुमोदना कर रखी होती है। १३३ खुद करता है, करवाता है, और कर्ता के प्रति अनुमोदना करता है। यही का यही पूरे दिन रौद्रध्यान है और जैनपन खत्म हो गया है। जैन तो कैसा होता है? भले ही हम कैसी भी मुश्किल में हों, फिर भी अगर उस समय कोई व्यक्ति अपने से हैल्प लेने आए, और वह अपनी मुश्किल जान जाए तो हम जैन कैसे ? उसे हैल्प मिलनी ही चाहिए, उसकी आशा भंग नहीं करनी चाहिए। कम-ज्यादा, लेकिन अंत में आपका साथ तो मिलना ही चाहिए। यदि आपके पास पैसों का साधन नहीं हो तो कोई बात नहीं लेकिन आपका साथ तो मिलना चाहिए कि और कोई कामकाज हो तो कुछ कहना। जैन समझकर, सेठ समझकर वह आपके पास आया और बेचारा वापस जाए, नि:श्वास लेकर, वह किस काम का ! आपको कैसा लगता है? बात मेरी सही है या गलत ? जहाँ अच्छा पेड़ देखते हैं, वहीं ये लोग छाया के लिए बैठ जाते हैं और यदि पेड़ ही काटने दौड़े तो क्या होगा? वैसे ही अभी ये सेठ लोग काटने दौड़ते हैं कि, 'आप नालायक हो, आप ऐसे हो, आप वैसे हो,' वगैरह । गरीबों को तो आप नालायक कह सकोगे, क्योंकि उन बेचारों की सत्ता नहीं है। और नौकरों का तो पूरे दिन तेल ही निकाल देता है। नौकरों के हाथ से गिरकर प्याले टूट गए कि, 'हाथ टूटे हुए हैं, तुझे ऐसा है' ऐसे गालियाँ देता है। तब तेरी क्या गति होगी? नौकरों के हाथ टूटे
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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