SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ आप्तवाणी-२ लेकिन स्पर्धा किसलिए? इस स्पर्धा से तो मानवता भी खो बैठे हैं। यह पाशवता तुझमें दिखेगी तो तू पशु में जाएगा। वर्ना श्रेष्ठी तो खुद पूर्ण सुखी होता है और मोहल्ले में सभी को सुखी करने की भावना में रहता है। जब खुद सुखी हो, तभी औरों को सुख दे सकता है। खुद ही यदि दु:खी हो वह औरों को क्या सुख देगा? दुःखियारा तो भक्ति करता है और सुखी होने के प्रयत्न में ही रहता है! _भले मोक्ष की बात एक तरफ रही, लेकिन आर्तध्यान और रौद्रध्यान पर तो अंकुश होना चाहिए न? उसकी छूट कैसे दी जाए? छूट किस चीज़ की होती है? धर्मध्यान की होती है। यह तो खुले हाथ से दुर्ध्यान का उपयोग करता है ! कितना शोभा देता है और कितना शोभा नहीं देता, उतना तो होना ही चाहिए न? प्रश्नकर्ता : अपध्यान यानी क्या? दादाश्री : अपध्यान तो इस काल में खड़ा हुआ है। अपध्यान यानी जो चारों ध्यान में नहीं समाए वह। भगवान के समय में चार प्रकार के ध्यान थे। उस समय में अपध्यान नहीं लिखा गया था। जिस समय जो अनुभव में नहीं आए न, वह लिखा जाए तो किस काम का? इसलिए अपध्यान तब नहीं लिखा गया था। इस काल में वैसे अपध्यान खडे हो गए हैं। अपध्यान का अर्थ मैं आपको समझाऊँ। यह सामायिक करते समय घडी में देखता रहता है कि, 'अभी कितनी बाकी रही, अभी कितनी बाकी रही, कब पूरी होगी, कब पूरी होगी?' इस प्रकार ध्यान सामायिक में नहीं होता, लेकिन घड़ी में होता है ! इसे अपध्यान कहते हैं। दुर्ध्यान हो तो चला सकते हैं। दुर्ध्यान यानी विरोधी ध्यान और सद्ध्यान मोक्ष में ले जाता है। और यह घड़ी देखते रहते हैं, वह तो अपध्यान कहलाता है। सीधा नहीं, उल्टा नहीं लेकिन तीसरे ही प्रकार का । घड़ी देखता रहता है, उसमें उसकी नीयत क्या है? एक व्यक्ति चिढ़कर खुद के अहंकार के पोषण के लिए गाँव जला देता है! लेकिन वह भी एक प्रकार का ध्यान कहलाता है। इन अपध्यानवालों को तो खुद के अहंकार की पड़ी ही नहीं होती, लेकिन जब भी ध्यान करता है-वह अपध्यान ही करता है-यानी कि संपूर्ण
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy