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________________ धर्मध्यान भाई मुझे मिले हैं, ' और तब वह धर्मध्यान में जाता है । यह तो किसीने भरी सभा में भयंकर अपमान किया हो तो वह आशीर्वाद देकर भूल जाता है। अपमान को उपेक्षाभाव से भूले, उसे भगवान ने धर्मध्यान कहा है। ये तो ऐसे लोग हैं कि अपमान को मरते दम तक नहीं भूलते ! १२५ धर्मध्यानवाला श्रेष्ठी पुरुष कहलाता है। पूरे दिन, सुबह से उठे, तभी से लोगों को ओब्लाइज़ करता रहता है । ओब्लाइजिंग नेचर का होता है। खुद सहन करके भी सामनेवाले को सुख देता है । दुःख तो जमा ही करता है। एक भी आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं होता । उसके मुँह पर अरंडी का तेल चुपड़ा हुआ नहीं होता | मुख पर नूर दिखता है। पूरे गाँव के झगड़ों को वह निपटा देता है । उसे किसी के प्रति पक्षपात नहीं होता। जैन तो कैसा होना चाहिए? जैन तो श्रेष्ठी पुरुष माने जाते हैं, श्रेष्ठ पुरुष कहे जाते हैं । पचास-पचास मील के रेडियस (परिधि) में उनकी सुगंध आती है ! अभी तो श्रेष्ठी से सेठ (शेठ) बन गए, और उनके ड्राइवर से पूछें तो कहेगा कि जाने दो न उनकी बात । सेठ शब्द की तो मात्रा निकाल देने जैसी है ! सेठ (शेठ) की मात्रा निकाल दें तो क्या बाकी रहेगा? प्रश्नकर्ता : शठ (धूर्त) ! दादाश्री : अभी तो श्रेष्ठी कैसे हो गए हैं? दो साल पहले नये सोफे लाया हो तो भी पड़ोसी का देखकर फिर से दूसरे नये लाता है । यह तो स्पर्धा में पड़े हुए हैं। एक गद्दा और तकिया हो तब भी चले । लेकिन यह तो देखा-देखी और स्पर्धा चली है। उसे सेठ कैसे कहेंगे? ये गद्दे-तकिये की भारतीय बैठक तो बहुत उच्च है । लेकिन लोग उसे समझते नहीं और सोफे के पीछे लगे हैं । फलाँ ने ऐसा लिया है तो मुझे भी वैसा चाहिए, और उसके बाद जो कलह होती है ! ड्राइवर के घर पर भी सोफे और सेठ के घर पर भी सोफे । यह तो सब नकली घुस गया है। किसीने ऐसे कपड़े पहने तो वैसे कपड़े पहनने की वृत्ति होती है ! यह तो किसी को गैस पर रोटी पकाते देखा तो खुद गैस ले आया । अरे ! कोयले और गैस की रोटी में फर्क नहीं समझता ? चाहे जो भी खरीदो उसमें हर्ज नहीं है
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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