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________________ धर्मध्यान वीतरागों के पास बेटा माँगता है ? वीतराग भला ऐसे में हाथ डालते होंगे? यदि हाथ डालें तो फिर वे वीतराग कैसे ? वीतरागों से माँगना हो तो एक ही चीज़ माँगो। मोक्ष माँगो । मोक्ष माँगो तो मोक्ष मिलेगा लेकिन क्या चिरौंजी माँगेगा तो मिलेगी ? १२३ यहाँ सबकुछ नया सुनने को मिलता है। रिलेटिव में दूसरी सब जगह जो सुनने को मिलता था, वह पूरा साधन मार्ग था, और यह साध्य मार्ग है। अनंत जन्मों से साधनों का ही रक्षण किया है और ध्येय निश्चित किए बगैर ध्यान करता रहता है। ध्यान तो कब हो सकता है? खुद ध्याता बन जाए तब। हम पूछें कि, ‘तू कौन है?' तब कहेगा, 'मैं मजिस्ट्रेट हूँ।,’'अरे, ध्यान करते समय ध्याता नहीं था? मजिस्ट्रेट था?' यह तो ध्याता कब बनता है कि जगत् का सबकुछ विस्मृत हो जाए तब । यह तो उसका ध्यान मजिस्ट्रेट में है, इसलिए ध्येय कहाँ से निश्चित हो ? यह तो ध्येय बड़ौदा जाने का हो फिर खुद ध्याता बन जाता है कि किसमें जाएँगे? लेकिन यह तो इन्द्रिय प्रत्यक्ष है और आत्मा का तो भान ही नहीं है, और वह तो अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष है ! चार प्रकार के ध्यान चार प्रकार के ध्यान होते हैं, उनमें से मनुष्य निरंतर किसी एक ध्यान में रहते ही हैं । आपको यहाँ पर कौन सा ध्यान रहता है? प्रश्नकर्ता : 'मैं शुद्धात्मा हूँ, ' वह ध्यान दादाश्री : वह तो लक्ष्य कहलाता है, लेकिन ध्यान कब कहलाता है कि जब ध्याता बन जाए तब । लेकिन अपने यहाँ तो ध्यान, ध्याता और ध्येय पूरा हो गया और योग के आठों अंग पूरे करके लक्ष्य में पहुँच गए । अभी आप से कहें कि, 'चलो, उठो, भोजन करने चलो, ' तो तब भी आप ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी रहते हो और फिर कहें कि, 'आपको यहाँ भोजन नहीं करना है,' तब भी ज्ञाता - दृष्टा और परमानंदी रह पाएँ तो उसे शुक्लध्यान कहा है। दुकान में गोलमाल करते हैं, कपड़ा खींचकर देते हैं, उसे रौद्रध्यान कहा है । ये मिलावट करते हैं वह रौद्रध्यान में जाता है। यह
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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