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________________ १२२ आप्तवाणी-२ बंधता! और संपूर्ण मोक्ष तो जब शुक्लध्यान उत्पन्न होगा, तब होगा। शुक्लध्यान तो 'ज्ञानीपुरुष' से ही प्राप्त हो सकता है। शुक्लध्यान के लिए तो इस काल में वीतरागों ने मना किया है, लेकिन यह तो अक्रम मार्ग है, अपवाद मार्ग है इसलिए 'हम' एक घंटे में ही शुक्लध्यान दे देते हैं। नहीं तो शुक्लध्यान की बात ही नहीं हो सकती न! और शुक्लध्यान हुआ तो काम ही हो गया न! पहले बहू थी वह सास बनी, क्योंकि बहू लाई तो खुद सास बनी। इस तरह यह पूरा संसार सापेक्ष है, भ्रांति है। यह वास्तविक चीज़ नहीं है और सापेक्ष को सच मान लिया कि यह मेरा ही बेटा है। बेटा अपना कब कहलाता है कि हम उसका अपमान करें, गालियाँ दें, मारें तो भी उसे अपने पर प्रेम आता रहे, तो हम जानें कि बेटा अपना ही है। लेकिन यह तो यदि एक घंटे अपमान किया हो तो वह आपको मारने दौड़े! अरे! एक फादर ने ज़रा ज़्यादती कर दी तो दो घंटों में ही बेटे ने बाप के सामने कोर्ट में दावा दायर कर दिया। और वकील से क्या कहता है कि, 'आपको तीन सौ रुपये ज्यादा दूँगा, यदि आप कोर्ट में मेरे फादर का नीचा दिखाओ तो!' ये नीचा दिखाते हैं ! यह तो संसार ही ऐसा है कि कोई मुश्किल के टाइम में अपना नहीं बनता। इसलिए भगवान का आसरा लेने जैसा है, और किसी का नहीं। लोग ऐसा कहते हैं न कि, 'मुझे ठोकर लगी।' ऐसा ही कहते हैं न कि, 'मैं ऐसे जा रहा था और मुझे ठोकर लगी?' ठोकर तो उसी जगह पर है, रोज़ वहीं के वहीं बैठी रहती है। ठोकर कहती है, 'मूर्ख, तूने मुझे मारा! तू टकाराता रहता है! मैं मना करूँ तो भी वह वापस टकराता है! मेरा तो मुकाम ही इस जगह पर है। यह मूर्ख अंधे की तरह मुझे मार रहा है।' ठोकर कहती है, वह ठीक है न? ऐसी यह दुनिया है! फिर मोक्ष ढूँढे तो कहाँ से होगा? वीतरागों का बताया हुआ मोक्ष सबसे आसान, सबसे सरल है। 'शुद्ध भाव से वीतरागों को पहचाने, तब भी मोक्ष हो जाए।' लेकिन वीतरागों को ये लोग पहचाने ही नहीं। और वीतरागों से कहते हैं कि 'मेरे यहाँ बेटा नहीं है।' इसलिए भगवान का पालना ले आते हैं। अरे,
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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