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________________ सहज प्राकृत शक्ति देवियाँ फिर गलन (डिस्चार्ज होना, खाली होना) होगा। यदि गलन नहीं होता न तो भी मुसीबत हो जाती। लेकिन जितना गलन होता है, उतना फिर खाया जाता है। यह साँस लिया वह पूरण किया और उच्छवास निकाला वह गलन है। सभी पूरण-गलन स्वभाव का है। इसलिए हमने क्या खोज की कि, 'कमी नहीं और अधिकता भी नहीं! हमें कभी लक्ष्मी की कमी भी नहीं पड़ी और अधिकता भी नहीं रही! कमीवाले सूख जाते हैं और अधिकतावाले को सूजन चढ़ती है। अधिक यानी क्या कि लक्ष्मी जी दोतीन साल तक जाएँ ही नहीं। लक्ष्मी जी तो चलती हुई ही भली, नहीं तो दुःखदायी हो जाती हैं। हमें तो लक्ष्मी जी कभी भी याद ही नहीं आतीं। याद किसे आती हैं कि जिसने दर्शन नहीं किए हों उसे, लेकिन हमारे अंदर तो लक्ष्मी और नारायण दोनों साथ में ही हैं। हमें लक्ष्मी जी सामने मिलें तो हम विनय करते हैं। वह नहीं चूकते। अपने में कहावत है न कि 'बेटा होगा तो बहू आएगी ही न!' 'नारायण' हैं, तब लक्ष्मीजी' आएँगी ही। हमें तो सिर्फ विनय से अपने घर का एड्रेस ही देना होता है। लक्ष्मी जी को तो लोग पहली बार गौने पर आई हुई बहू की तरह रोककर रखते हैं। लक्ष्मी जी विनय चाहती हैं। जहाँ भगवान हैं, वहाँ वैभव की क्या कमी? लक्ष्मी जी तो हाथ में जैसे मैल आया करता है, वैसे हर किसी के हाथ में हिसाब के अनुसार आती ही रहती हैं। जो लोभांध हो जाता है, उसकी सभी दिशाएँ बंद हो जाती हैं। उसे और कुछ भी नहीं दिखता। एक सेठ का चित्त पूरे दिन व्यापार में और पैसे कमाने में, तो उसके घर की बेटियाँ और बेटे कॉलेज के बदले किसी और जगह जाते हैं। क्या वह सेठ देखने जाता है? अरे, तू कमाता रहता है और वहाँ तो घर बरबाद हो रहा है। हम तो नकद ही, उसके हित का ही कह देते हैं। १९४२ के बाद की लक्ष्मी प्रश्नकर्ता : मैं दस हज़ार रुपये महीने कमाता हूँ, लेकिन मेरे पास लक्ष्मी जी टिकती क्यों नहीं?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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