SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकृति समझ जाता है। नहीं तो वह शोर मचा देता है, तूफ़ान करके रख देता है। उसे समझाना आना चाहिए। अपने में आत्मा है और आत्मा प्राप्त हो जाने के बाद सभी कुछ आ जाता है। सभी कलाएँ सीख सकता हैं, यदि ढूँढे तो। खुद शोध करे और थोड़ी राह देखे तो अंदर से दर्शन में आ जाता है। लेकिन यदि शोध करे तो। शोध नहीं करते, जानते ही नहीं हैं, और मारपीट करके ज़बरदस्ती करवाते हैं। प्रकृति का स्वभाव कैसा है कि चीनी पर कंट्रोल आनेवाला हो उससे पहले ही वह उछलकूद करती है कि, 'चीनी ले आएँ, चीनी ले आएँ। चीनी पर कंट्रोल आनेवाला है,' ऐसा कहती है। हम बहुत समझाएँ कि कंट्रोल आएगा तब थोड़ी-थोड़ी ले आएँगे, फिर भी वह कहती है, 'नहीं।' ऐसा है। प्रकृति तो बालक जैसी है। प्रकृति वृद्ध जैसी है और बालक जैसी भी है। समझाने के लिए बालक जैसी है। हम तो इसे गोलियाँ खिलाखिलाकर समझाते हैं। प्रश्नकर्ता : प्रकृति वृद्ध जैसी है वह किस दृष्टि से? दादाश्री : वृद्ध जैसी है, उसका क्या कारण है कि चाहे कितनी भी बड़ी सेना आए, फिर भी वह नहीं छोड़ती, पकड़कर रखती है। और छोड दे तो सहज ही छोड़ देती है। वह 'हमने' देखा है। प्रकृति यदि जड़ होती तो वह छोड़ती ही नहीं, वह वीतरागी है। लेकिन प्रकृति चेतन भाव को प्राप्त है, मिश्रचेतन है। मिश्रचेतन यानी क्या कि ये जो सब इस प्रकृति के परमाणु हैं, इन्हें मिश्रसा कहा जाता है। मिश्रसा जब रस देकर जाती है, तब उसे विश्रसा कहा जाता है। शुद्ध परमाणुओं को विश्रसा कहा जाता है। और उनमें भाव किए, उस समय प्रयोगसा हो गए। इस प्रकृति के परमाणु का गुण चेतन भाव को प्राप्त है। इसलिए उसे कहा जा सकता है, समझाया जा सकता है। इस टैप रिकॉर्डर से कहें, चिल्लाएँ, समझाएँ, पटाएँ तो भी क्या समझा सकते हैं? लोग आत्मा को नहीं जानते और उसके बिना चलता ही है न उन्हें?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy