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________________ ७८ आप्तवाणी-२ बालक स्वभाव की है, इसलिए उसे समझा-पटाकर, गोलियाँ खिलाकर, लालच देकर, पकौड़ियाँ खिलाकर भी हल लाना है। प्रश्नकर्ता : मतलब उसे बहला-फुसलाकर हल लाना है? दादाश्री : ना, बहला-फुसलाकर नहीं, समझाकर। 'बहलाफुसलाकर,' ऐसा अर्थ लगाना गलत है। उसे समझाना है। वह खुद यस करे, एक्सेप्ट करे, तब तक समझाना है। समझाए बिना काम नहीं होगा। विरोधी नहीं होना है। विरोध करने से तो बल्कि वह अपनी गाड़ी को उलट देगी। इन बैलों को बहुत मारें तो वे गाड़ी को उलट देते हैं। जब मारें तब दौड़ते ज़रूर हैं। इसलिए हमें ऐसा लगता है कि मारने से ही दौड़ते हैं, चलते हैं, वैसी श्रद्धा बैठ जाती है, लेकिन कब वे गाड़ी को उलट दें, वह कह नहीं सकते। इसके बजाय तो उसे समझा-पटाकर काम करवाना। प्रकृति बालक स्वभाव की है। प्रकृति भले ही कितनी भी बड़ी हो जाए, भले ही कितने भी साल हो जाएँ, फिर भी स्वभाव से वह बालक है। भले ही पूरी जिंदगी वृद्ध का काम कर रहा हो, लेकिन कब बाल अवस्था में आ जाए, वह कहा नहीं जा सकता। रो उठती है, दीन हो जाती है, गिड़गिड़ाती है, सबकुछ करती है। करती है या नहीं करती? प्रश्नकर्ता : करती है। दादाश्री : प्रकृति बालक अवस्था कहलाती है तो फिर ऐसे बालक को समझाना, वह तो आसान चीज़ है। नहीं है आसान? प्रकृति से समझा-पटाकर काम लेने जैसा है। समझाना तो अवश्य चाहिए। वह 'यस' नहीं कहे, तब तक सब बेकार है और वह यस कहे, ऐसी है। ___यों छह महीने से मना कर रहा हो, वह पाव घंटे में, समझाएँ तो यस कहे, ऐसा है। और फिर बालक जैसा है। और ज़िद पर चढ़े तो लाख सालों तक भी ठिकाने पर नहीं आए। हठ करें और समझाएँ, उन दोनों में बहुत फर्क है। समझाने के लिए बहुत कला चाहिए। बच्चा भले ही कितना भी हठ पर चढ़ा हो, लेकिन यदि उसे समझाना आता हो, तो वह
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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