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________________ प्रकृति थे। जिस किसी का गुण भूले तो वह आपको ठेठ तक नहीं पहुँचने देगा। लेकिन अपना ज्ञान अनुपम है ! इसलिए सबकुछ हो सके ऐसा है। ७५ प्रकृति के प्रत्येक परमाणु को जो पहचान गया, वह छूट गया। भक्त तो धीरे-धीरे मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ते हैं । लेकिन यदि किंचित् मात्र सांसारिक इच्छा नहीं करे तो ज्ञानी मिल ही जाते हैं । ज्ञान और प्रकृति दोनों अलग ही है। लेकिन प्रकृति को जहाँ अंतराय पड़ते हैं, वहाँ ऑब्स्ट्रक्शन आ जाएगा, इसलिए टॉर्च डालकर देख लेना । I प्रकृति धर्म क्या कहता है ? प्राकृत धर्म की रचना तो देखो ! बड़ेबड़े ज्ञानियों को भी उसमें रहना पड़ा। प्राकृत धर्म तो पहचानना ही पड़ेगा। सिर्फ ज्ञाता-दृष्टा ही आत्मा का धर्म है और बाकी के सभी प्राकृत धर्म हैं। यह प्राकृत कैसा है? एक प्राकृत निर्भय बनाता है, जबकि दूसरा भयानक बनाता है। अनादि से प्रकृति का ही परिचय है । इस प्रकृति को अंत में भगवान रूप होना पड़ेगा। यह अपना ज्ञान ही ऐसा है कि प्रकृति भगवान रूप हो जाती है और परमानंद बरतता है ! प्रकृतिमय हुआ, इसलिए परवश हुआ। प्रकृति के अंतराय टूटे तब पुरुष हो गया, इससे ग़ज़ब की शक्ति पैदा होती है! ये लोग कहते हैं कि वह सब तो प्रकृति ही है । यह प्रकृति तो मूल अपनी भूल से ही खड़ी हो गई है, वह अब कैसे नचा रही है । जहाँ संयोग टिकनेवाले नहीं हैं, वहीं पर शाश्वत संयोग मान बैठे हैं ! प्रकृति की विभाविकता प्रश्नकर्ता : प्रकृति विभाविक हो जाती है वह... जब ग्रंथियाँ अधिक फूटती हैं उससे ऐसा होता क्या ? दादाश्री : हाँ, लेकिन उसे एविडेन्स आ मिलते हैं, इसलिए ही न? इंसान को जब चक्कर आएँ तब वह गिर नहीं जाता, लेकिन बहुत ज़्यादा चक्कर के एविडेन्स आ जाएँ तो वह गिर भी सकता है। 'ज्ञान' से पहले आप स्टेशन गए हों और वहाँ पता चले कि गाड़ी पाव घंटा लेट है । तब आप उतना इंतज़ार करते हो । फिर पता चले कि अभी आधा घंटा और
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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