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________________ ७४ आप्तवाणी-२ जब जेब काटनेवाले की प्रकृति भगवान जैसी लगेगी, तब मोक्ष में जा सकेंगे। वह जेब काटता है, वह तो उसकी प्रकृति है। वह प्रकृति, वह भगवान ही है, लेकिन रिलेटिव भगवान है। जबकि आत्मा रियल भगवान है। प्रकृति भगवान है, लेकिन उस व्यू पोइन्ट को नहीं जानता, क्योंकि बुद्धि है न! इसलिए बुद्धि बताती है कि 'जेब काट गया, पैसे ले गया।' लेकिन दूसरे व्यू पोइन्ट को, रियल को नहीं जानता है। नहीं तो जेब काटनेवाला तो खुद ही भगवान है, खुद ही परमात्मा है, लेकिन वैसी समझ ही नहीं है न! भगवान ने जेब काटनेवाले को, दानेश्वरी, सती को, वैश्या को, गधे को, सभी को भगवान स्वरूप से देखा, सभी को एक सरीखा देखा। लोगों को मैं-तू दिखता है और 'वीतराग' को सभी ओर शुद्ध चेतन और प्रकृति स्वभाव दिखते हैं। इस आम की टोकरी में से आम चखें तो 'यह खट्टा है' ऐसा उसका प्रकृति स्वभाव दिखता है। 'वीतराग' सभी की प्रकृति पहचान जाते हैं, लेकिन भेदभाव नहीं होता, इसीलिए उन्हें 'खट्टी है,' 'मीठी है' ऐसा झंझट नहीं रहता, और 'खुद' सबके साथ 'वीतराग' रहते हैं। उनके लिए तो यदि दान देता है तो वह भी प्रकृति है, और जेब काटता है तो वह भी प्रकृति है। उन्हें 'यह ठीक है और यह ठीक नहीं है' ऐसा नहीं होता है। ऐसा कहा तो राग-द्वेष हो जाएँगे। और इसमें तो एक स्पंदन हुआ कि सबकुछ हिल गया। बाकी इसमें अन्य कोई कर्ता है ही नहीं। वीतराग कैसे थे? अंत में उन्होंने क्या देखा? खुद की ही प्रकृति देखी थी। खुद की ही प्रकृति को देखते रहते थे। प्रकृति सीधी चल रही है या टेढ़ी? वही देखते रहते थे। सभी जगह ज्ञाता-दृष्टा ही रहते थे। औरों की प्रकृति देखने से ही यह संसार खड़ा हो गया है। वीतराग मात्र खुद की ही प्रकृति को देखा करते थे और जिसे देखे बिना चारा ही नहीं है। केवलज्ञान की अंतिम निशानी वही है कि खुद की ही प्रकृति को देखते रहें। किसी का एक भी गुण मत भूलना। सौ अवगुण भूल जाना लेकिन किसी का एक भी गुण मत भूलना। वीतराग किसी के भी गुण नहीं भूले
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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