SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (91) 1. दुरारोह 2. बद्धमाना 3. पुष्पमंडिता 4. रूचिरा 5. चित्तविस्तार 6. रूपवती 7. दुर्जया 8. जन्मनिदेश 1. यौवराज्य 10. अभिषेक।' ___ महावस्तु में उल्लिखित ये दस भूमियाँ महायान संप्रदाय के ग्रंथ "दसभूमिशास्त्र" से भिन्न है। दसभूमिशास्त्र में निम्न दस भूमियाँ (अवस्थाएँ) दर्शायी गई है। ___ 1. प्रमुदिता 2. विमला 3. प्रभाकरी 4. अर्चिष्मी 5. सुदुर्जया 6. अभिमुक्ति 7. दूरंगमा 8. अचला 9. साधुमती 10. धर्ममेधा। असंग के महायान सूत्रालंकार और लंकावतार में 11 भूमियों का उल्लेख किया गया है। इसमें अधिमुक्तिचर्या भूमि को प्रथम भूमि की संज्ञा दी गई है और उसके पश्चात् प्रमुदिता आदि 10 की परिगणना की है। लंकावतार में धर्ममेधा तथा तथागत भूमियों को अलग-अलग माना गया है। अधिमुक्तचर्याभूमि इसमें साधक को पुद्गल नैरात्म्य तथा धर्म नैरात्म्य का यथार्थ ज्ञान होता है। यह अवस्था विशुद्धि की अवस्था कही जाती है। उसे बोधिप्रणिधिचित्तावस्था भी कहा जाता है। इस भूमि में बोधिसत्त्व दान-पारमिता का अभ्यास करताहै। यह बुद्धत्व की दिशा में साधना का पूर्व चरण है____ 1. प्रमुदिता-इस भूमि को बोधिप्रस्थानचित्त की अवस्था कहा जाता है। इसमें शील-पारमिता का अभ्यास करता है। इसमें पूर्ण शील विशुद्धि को प्राप्त करता है। 2. विमला-इसमें शान्ति पारमिता का अभ्यास करता है। यह अधिचित्त शिक्षा है। इस भूमि का लक्षण ध्यान की प्राप्ति है। इससे अच्युत समाधि का लाभ होता है। 3. प्रभाकरी-इस भूमि में साधक समाधि के द्वारा अनेकानेक धर्मों का साक्षात्कार कर लोकहित के लिए बोधि-पक्षीय धर्मों की परिणामना करता है। ज्ञान रूपी प्रकाश को लोक में फैलाने के कारण इसे प्रभाकरी कहा गया है। 4. अर्चिष्मती-इस भूमि में साधक क्लेशावरण और ज्ञेयावरण का विनाश करता है तथा वीर्य-पारमिता का अभ्यास करता है। 1. 1. उद्धृत-बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास पृ. 359 2. वही. पृ. 360-362
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy