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________________ (90) 2. सकृदागामी भूमि_ 'सकृदागामी' शब्द का अर्थ है-केवल एक बार आनेवाला अर्थात् जन्म लेने वाला। स्रोतापन्न साधक जब कामराग (कामवासना) और पटिघ (क्रोध) इन दो संयोजनों को शिथिल कर देता है, तब वह सकृदागामी बनता है। इस भूमिका में आस्रवक्षय अर्थात् क्लेशक्षय करने का प्रयत्न प्रबल होता है। जैसे-जैसे क्लेशक्षय करता है वैसे-वैसे प्रज्ञाप्रकाश अधिकाधिक प्रगट होताहै। सकृदागामी को निर्वाण से पहले केवल एक जन्म और लेना होता है। 3. अनागामी___ 'अनागामी' शब्द का अर्थ है अपुनरागमन अर्थात् पुनः कमी नहीं आने वाला। जब सकृदागामी कामराग और पटिघ का पूर्ण क्षय कर देता है, तब वह अनागामी बनता है। अनागामी की जब मृत्यु होती है, तब उसका जन्म इहलोक में नहीं होता है। वह ब्रह्मलोक में अवतार लेता है और वहाँ से सीधे ही निर्वाण प्राप्त करता है। इस भूमिका में सत्काय दृष्टि, विचिकित्सा, शीलव्रतपरामर्श, कामराग और प्रतिघ इन पाँच संयोजनों का पूर्णतः क्षय कर देता है। 4. अर्हत् अनागमी साधक जब शेष पाँच संयोजन-रूपराग (ब्रह्मलोक की प्राप्ति की इच्छा), अरूपराग (अरूप देवलोक प्राप्ति की इच्छा) मान, औद्धत्य (चित्त की चंचलता) और अविद्या (अज्ञान) का नाश कर देता है तब अर्हत् भूमिका में प्रविष्ट होता है। समूल क्लेशों का उच्छेद हो जाने से पूर्ण प्रज्ञा का उदय होता है। जलकमलवत् वह जगत् में अलिप्त रहता है। वह जीवन्मुक्त है। वह वर्तमान जन्म में ही निर्वाण प्राप्त कर लेता है। उसका पुनर्भव नहीं होता। बुद्ध और अर्हत् में इतना ही अन्तर है कि बुद्ध स्वप्रयत्न से ही निर्वाण का साक्षात्कार करते हैं, जबकि अर्हत् का निर्वाण-साक्षात्कार परोपदेश-परनिमित्त सापेक्ष है। इस प्रकार क्रमशः इन चार भूमियों में पसार होता हुआ साधक निर्वाण लाभ प्राप्त कर लेता है। महायान में इन भूमियों में विभिन्नयों दर्शायी है। वे इस हेतु दस भूमियों को स्वीकार करते हैं(ब) बुद्धत्व प्राप्ति में सहायक दस भूमियाँ संक्रमणकालीन स्थिति में लिखे गये ग्रंथ 'महावस्तु' में अग्र दस भूमियों का - विवेचन किया गया है
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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