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________________ (35) प्रशंसा अर्थघटना से संयुक्त है। सायणाचार्य ने इसके हार्द को खोलते हुए कहा कि, प्रकृष्ट पूजा के योग्य अर्थ में प्रयुक्त अर्हत् पद है। (ई. पू. रसरी. शती.) ___ इससे परवर्ती ब्राह्मण, आरण्यक, संहिता, उपनिषद्, आदि वैदिक ग्रन्थों में भी अर्हन्, अर्हत् तथा अर्हन्त ये तीन रूप उपलब्ध होते हैं। शतपथ ब्राह्मण', ऐतेरेय ब्राह्मण, गोपथ बाह्मण, तैत्तिरीय, शांखायन', आदि ब्राह्मण ग्रन्थों में वेदों के अनुसार ही पूजार्थक तथा प्रशंस्य अर्थ में प्रयोग हुआ है। इसके अतिरिक्त ऐतेरेय आरण्यक, तैत्तिरीय आरण्यक' में भी यही स्वरूप विकास पथ पर आरूढ हुआ है। यहाँ भी अग्नि, रूद्र, इन्द्र आदि देवताओं के विशेषण रूप में तथा पूजा, प्रशंसा, योग्य अधिकारी, समर्थ आदि अर्थों में प्रयोग किया गया है। इस प्रकार हमें ज्ञात होताहै कि वैदिक साहित्य में इसका जो स्वरूप निर्धारित किया गया है, वह अद्यापि विद्यमान है। वेदांग मान्य उपनिषद् में मात्र पारमात्मिकोपनिषद् में अर्हत् पद का उल्लेख समर्थ अर्थ को लेकर किया गया है। पश्चात्वर्ती साहित्य में भी इस पद का प्रयोग दृष्टिगत होता है। वाचस्पत्यम् शब्दकोष में इसके अनेक अर्थ उपलब्ध होते है- 1. पूजास्तुत्यादिभिराराध्ये 2. ईश्वर 3. शक्र 4. पूजनीय 5. विष्णु 6. पूजा 7. योग्य 8. गति 9. योग्यता तथा 10. मूल्य। मनुस्मृति, रघुवंश गीता आदि परवर्ती साहित्य में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रकार ब्राह्मण परम्परा में अर्हत् पद के प्रर्याप्त उद्धरण हमें प्राप्त होते हैं। बौद्ध धर्म में अर्हत् निवृत्तिमूलक श्रमण संस्कृति की प्रवाहित धारा में बौद्ध परम्परा अपने उपास्य के रूप में बुद्ध को परमादर्श मानकर गतिमान हुई है। इस परम्परा में अर्हत् का 1. शतपथ ब्राह्मणः 3.4.1.0, 3.4.1.6., 3.4.1.3. 2. ऐतरेय ब्रा. 6.12. 3. गोपथ ब्रा. 2.2.22. 4. तैत्तिरिय ब्रा. 2.8.6.9 5. शांखायन ब्रा. 8.4, 27.4 6. ऐतरेय आरण्यक 1.5.3. 7. तैत्तिरीय आर 4.5.7. 8. पारमात्मिक उपनिषद् 2.6 9. वाचस्पत्यम् पृ. 381-382
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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