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________________ (350): के लिए न जपनीय है न स्मरणीय ही। वहाँ इस महामन्त्र का पवित्र जाप सामायिक आदि विरतिधर के अतिरिक्त साधुमुनि या गृहस्थ बालक, स्त्री सभी के निःशंक कर सकने के लिए विहित है। * इन सभी विशिष्टताओं के कारण श्री नवकार महामन्त्र सभी मंत्रों का शिरोमणि है। इसकी साधना सर्वथा निरापद और आबाल-वृद्ध सभी को सहजसुलभ है। अधमाधम पुरुष स्त्री या तिर्यञ्च सभी इस महामंत्र के श्रवण मात्र से सद्गति को प्राप्त हुए हैं व होते हैं। ऐसा विशिष्ट शक्तिसम्पन्न और अद्भुत प्रभावी होते हुए भी इस मन्त्रराज का अनुपम सारल्य इसका सर्वजनीन मुख्य आकर्षण है। मंत्र की गहराई ___ मंत्र केवल किसी शब्द के अर्थ तक ही सीमित नहीं रहते, वरन् उससे काफी आगे निकल आते हैं। अर्थ के आगे शब्द की जो शक्ति है, वह भाषा की सामान्य परिधि में प्रायः नहीं आती। जब हम किसी शब्द का इस्तेमाल सतह पर करते हैं तब हम उसका बहुत ही मामूली, कामचलाऊ उपयोग करते हैं। चिन्तन शब्द का गहरा ब्रह्म है, किन्तु इसके आगे भी एक तल है अनुभूति का।शब्द जब अभिव्यक्ति से हटकर अनुभूति होता है, तभी उसका सम्यक्त्व प्रकट होता है अपने पूरे तारुण्य पर। मंत्र की परिभाषा देतु हुए लोग उसे मात्र शब्द या शब्द समूह कहते हैं और मानते हैं यह शब्द या शब्दकुल इस तरह से अनुसंधान पर है कि वह अपने लक्ष्य के अलावां कहीं और जा ही नहीं सकता। जब हम शब्द को इस तरह साध लेते हैं कि वह अस्खलित मुद्रा में सीधे लक्ष्य पर होता है, तब उसे मन्त्र कहा जाता है। मन्त्र में शब्द मात्र ही नहीं होता वरन् वह हमारी आत्मिक गहराईयों से स्वयं की गहराईयों को जोड़ता है। इस प्रकार शब्द की और साधक की गहराईयों के तादात्म्य का नाम मंत्र है। सिर्फ मंत्र कह देने मात्र से कोई शब्द-समूह मंत्र नहीं होता, वह घटित होता है तब, जब साधक की गहराईयाँ उससे जुड़ जाती है। विद्युतधारा जब तक किसी आसन से नहीं जुड़ती, अपनी शक्ति को प्रकट करने में असमर्थ बनी रहती है। किन्तु जैसे ही उसे कोई आधार प्राप्त होता है अर्थात् बल्ब, हीटर, पंखा या अन्य कोई यन्त्र, वैसे ही उसकी सार्थकता बनती है और वह तुरन्त प्रकट हो जाती है। जैसे कोई स्विच काम करता है दो स्थितियों या धाराओं को एकप्राण करने में, ठीक उसी प्रकार मंत्र भी सेतु का काम करते हैं।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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