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________________ (349) हुई है। उसका वाच्यार्थ लोकोत्तर-श्रेष्ठतम महर्षियों के प्रणाम-स्वरूप है। अर्थ दृष्टि से यह सरल है, और इसकी रचना क्लिष्ठता-रहित एवं उच्चारण में सर्वथा स्पष्ट है। छोटे-बड़े सभी साक्षर इसका पाठ-जाप आसानी से कर सकते हैं। वे इसका शब्दार्थ भावार्थ भी सहज ही हृदयंगम कर सकते हैं। इसकी साधना-जाप या स्मरण प्रायः निःस्पृह सम्यग्दृष्टि एवं उत्तम आत्मार्थी व्यक्ति ही करते हैं। फल प्राप्ति हेतु साधक को अन्य मन्त्रों से जहाँ कामनाएँ करनी पड़ती है, वहाँ नवकार महामन्त्र का जाप निष्काम करने से साधक की समस्त कामनाएँ स्वतः पूर्ण हो जाती हैं। नमस्कार महामंत्र की यह अद्भुत फलदात्री शक्ति उसके प्रयोजकों की अपूर्व निष्काम भावनाओं की परम प्रतीक है। अन्य मन्त्रों द्वारा जिन लौकिक देवों की आराधना या आह्वान किया जाता है वे सभी सरागी, संसारी और स्पृहायुक्त हैं। जबकि नवकार मन्त्र द्वारा जिन महात्माओं की आराधना की जाती है, वे सभी आत्महितैषी, वीतरागी, नि:स्पृह और परम करुणा-सागर महर्षिगण है। जिनकी अचिन्त्य शक्तिमत्ता और आत्मतेज के समक्ष लौकिक सरागी देवों की सत्ता भी सर्वथा नगण्य है। __ अन्य मन्त्रों में लौकिक देव अधिष्ठाता पदधारी होते हैं, जिनकी शक्ति सीमित हुआ करती है। उनके जाप से जब मन्त्र का स्वामी देवता वशीभूत होता है, तभी वह मन्त्र सिद्ध हुआ माना जाता है। जबकि पंच परमेष्ठी मय नवकार मंत्र के स्वामी होने की शक्ति किसी भी लौकिक देव में नहीं होती। बल्कि लौकिक देव उल्टे महाप्रभाविक नमस्कार मन्त्रस्थित पंच परमेष्ठी के सेवक बने रहते हैं, तथा इससे भी अधिक वे लौकिक देवगण उन आराधकों के जो नवकार मंत्र की आराधना करते हैं, उनकी पंच परमेष्ठी की भक्ति से आकृष्ट होकर वे देव उनके भी सेवक बनकर रहते हैं। इससे सिद्ध है कि नमस्कार किसी देव की शक्ति से शक्तिशाली नहीं, किन्तु स्वतः ही ऐसा अचिन्त्य शक्ति सम्पन्न है कि देवों को भी उनके वशवर्ती होना पड़ता है। __ अन्य मन्त्रों से लाभ-हानि, भलाई-बुराई आदि उभय प्रयोजन साधे जाने के विधान है किन्तु नमस्कार महामंत्र से किसी का कभी भी अशुभ न होकर सभी का शुभ होता है। वह सभी के लिए सदैव परम इष्टकारक है। यह इसकी सर्वोपरि विशिष्टता है। इस महामन्त्र की अनुपम शुचिता है। जहाँ अन्य मन्त्र लौकिक साधन भावप्रदाता-प्रवण होने से सामायिक-रत अथवा पौषध या समकिती आदि विरतिधर
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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