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________________ (311) लेकिन सामाजिक करुतियाँ, या कर्त्तव्य, या अर्थ और काम पर नियन्त्रण का कार्य मोक्ष दर्शन की परिधि में हैं / अतः आर्थिक क्षेत्र में विशुद्धिकरण का कार्य साधु ने अपने हाथ में लिया है। उनका उपदेश सदैव प्रामाणिक जीवन यापन करने का रहा है। वर्तमान समय में दिन-प्रतिदिन समाज में प्रामाणिकता का अभाव हो रहा है, जिसका उन्नयन साधुओं के द्वारा हो सकता है। ___ यह सत्य है कि साधु राष्ट्र को आर्थिक रूप से सुसम्पन्न करने के लिए कुछ भी नहीं करता, क्योंकि वह स्वयं अर्थ और काम से परे है। वह पूर्ण रूप से श्रावक-गृहस्थों पर अवलम्बित है। उनके आहार-विहार, आवास आदि की व्यवस्था संघ करता है। तो क्या साधु समाज पर भार है? जो साधु आगमानुसार प्रवृत्ति व आचरण करते हैं, वे भार स्वरूप नहीं। क्योंकि उनके आहार संबंधी नियमों के अवलोकन से स्पष्टतः ज्ञात होता है कि मधुकरी वृत्ति से जीवन यापन करने वाला कैसे भार रूप हो सकता है? वह समाज को आर्थिक रूप से हानि नहीं पहुँचता। साधु को भी यह स्मरण रखना चाहिये कि वह समाज से जितना ले, उससे अधिक देने का प्रयास करे। दूसरी दृष्टि से भी इस पर विचार करें। साधु राष्ट्र की कोई सम्पत्ति अपने पास नहीं रखता, न ही उस पर मोह करता है। यहाँ तक कि वह तो समाज को भी आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति नहीं रखने का उपदेश देता है। वह अपरिग्रही है और अपरिग्रहवाद का उपदेश देने का भी अधिकारी है। ऐसे सैंकडों उदाहरण शास्त्रों में तथा आधुनिक काल में मिलते हैं कि उनके उपदेश से श्रावकों ने परिग्रह-परिमाण व्रत लिया। उनके उपदेश से शिक्षालय, औषधालय स्थापित किये गये हैं / त्याग की भावना जागृत करने में तथा धनिक वर्ग में दान की प्रेरणा देकर समाज में कल्याणकारी कार्य करवाने का श्रेय साधुओं को ही है। नैतिक मूल्यों की स्थापना में साधु का सहयोग किसी भी राष्ट्र की उन्नति उस देश के निवासियों पर अवलम्बित होती है। नागरिकों के पारस्परिक सहयोग, संगठन तथा त्याग की भावना से देश में अपूर्व बल पैदा होता है। साधु हमेशा समाज के सम्पर्क में आता है, उसे उपदेश देता है। आध्यात्मिक चेतना जागृत करने के सिवाय वह समाज में उन गुणों के विकास के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करता है, जिनसे एक नागरिक दूसरे के प्रति स्नेहभाव रखता है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिए, समाज, धर्म और देश के लिए महान से महान त्याग करने के लिए तैयार हो जाता है। दूसरे की सेवा करने में अपने का
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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