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________________ (227) यहाँ साधु के लक्षणों में मुख्यतया समता को स्थान दिया गया है। स्वकार्य तथा पर कार्य रूप परमार्थ को साधने वाला साधु है। साधु : पर्याय (समानार्थक शब्द) साधु शब्द के अनेकशः समानार्थक शब्द उपलब्ध होते हैं। यद्यपि उनका अर्थ कुछ-कुछ भिन्नता लिये हुए हैं, तथापि भिन्नता में भी समानता दृष्टिगोचर होती है सूत्रकृताङ्ग' में साधुत्व की पर्यायों का सुंदर समालोचन, व्याख्या के साथ किया गया है। उसमें उल्लेख है जो दांत (इन्द्रियों और मन को वश कर चुका) है, द्रव्य (भव्य मोक्षगमनयोग्य) है , व्युत्सृष्टकाय-जिसने शरीर के प्रति ममत्व का त्याग कर दिया है, उसे माहन, श्रमण, भिक्षु, या निर्गन्थ कहना चाहिये। यहाँ प्रश्न किया गया है कि ऐसे साधक को माहन, श्रमण, भिक्षु या निर्ग्रन्थ क्यों कहना चाहिये। उसका मार्मिक विश्लेषण किया गया है___ माहन -विरत सव्वपावकम्मे.-जो समस्त पाप कर्मों से विरत है जो किसी पर राग द्वेष नहीं करता, जो कलह से दूर रहता है, किसी पर मिथ्यादोषरोपण नहीं करता, किसी की चुगली नहीं करता, दूसरों की निंदा नहीं करता, जिसकी संयम में अरूचि (अरति) एवं असंयम में रूचि नहीं है, कपट युक्त असत्य नहीं बोलता (दम्भ नहीं करता) अर्थात् अट्ठारह पापस्थानों का सेवन नहीं करता, पांच समितियों से युक्त, ज्ञान-दर्शन-चारित्र से सम्पन्न, सदैव षड्जीवनिकाय की यतना, रक्षण में तत्पर अथवा सदा इन्द्रिय जयी होता है, किसी पर क्रोध नहीं करता, न अभिमान करता है, इन गुणों से सम्पन्न अणगार, 'माहन' कहे जाने योग्य है। प्रस्तुत सूत्र में 'माहन' का सरस निरूपण किया गया है। वास्तव में 'माहन' पद मा + हन शब्दों से निर्मित होता है जिसका अर्थ है-'किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो', इस प्रकार का उपदेश जो अन्य को देता है, अथवा जो स्वयं त्रसस्थावर, सूक्ष्म-बादर, जीवों की किसी भी प्रकार से हिंसा नहीं करता। हिंसा दो प्रकार की है-1. द्रव्य 2. भाव। राग, द्वेष, कषाय या असत्य, चोरी, परिग्रहवृत्ति आदि सब भाव हिंसा के अन्तर्गत है। भाव हिंसा द्रव्यहिंसा से भंयकर है। 'माहन' 1. सूत्रकृताङ्ग : 16 अध्य. 2. वही. 16.634
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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