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________________ __ (211) कल्पिता) भी कहते हैं। इसके पाँच वर्ग गिने जाते हैं-1, निरयावलिया 2. कप्पवडिंसिया 3. पुप्फिया 4. पुप्फचूलिया 5. वण्हिदसा। इसके दस अध्ययन है। 9. कप्पवडिंसिया (कल्पावतंसिका) अणुत्तरोववाइयदसा के उपांग रूप में निर्देशित इस आगम के दस अध्ययन हैं। सौधर्मादि कल्प (स्वर्ग) में जो उत्पन्न होकर मोक्षगामी होंगे, उनका अधिकार वर्णित किया है। 10. पुफिया (पुष्पिता) यह पण्हावागरण का उपांग माना जाता है। इसमें भी अध्ययन हैं। गद्यमय इसकी रचना है। 11. पुष्फचूलिया (पुष्पचूलिका) दस अध्ययनों में विभक्त यह आगम विवागसुय का उपांग माना गया है। यह उपांग गद्यात्मक शैली में निबद्ध है। 12. वण्हिदसा (वृष्णिदसा) इसका अन्य नाम 'अंधगवण्हिदसा' भी है। यह दिट्ठीवाय का उपांग माना जाता है। यह बारह अध्ययनों में विभक्त है। सर्वांश गद्य में रचित है। इस प्रकार ये 12 उपांग भी आगम में स्थान प्राप्त किये हुए हैं। इनका परिमाण निम्न प्रकार से हैउपांगों को परिमाण इन बारह उपांगो का परिमाण क्रमशः निम्न प्रकार से है-1600, 2100, 4700, 7787, 2296, 4454, 2200, 1100 (पाँच उपांग का सम्मिलित परिमाण) __इस प्रकार बारह उपांगों का परिमाण कुल 26237 श्लोक हैं। 4. मूल सूत्र' 1. आवस्सय (आवश्यक) अंगबाह्य सूत्रों में प्रधान यह आगम 130 श्लोक प्रमाण है। यह 6 अध्ययनों में विभक्त है। अवश्य करने योग्य होने से आवश्यक संज्ञा प्राप्त है। 1. सामायिक 2. चतुर्विंशतिस्तव 3. वंदनक 4. प्रतिक्रमण 5. कायोत्सर्ग 6. प्रत्याख्यान, ये 6 1. पिस्तालीस आगमो पृ. 33-41
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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