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________________ (210) इसके प्राकृत नामांतर है। राजप्रेसनकीय, राजप्रेसनजित और राजप्रश्नकृत ये संस्कृत नामांतर है। यह आगम गद्य में रचित है। 3.जीवाभिगम इस आगम के संस्कृत में जीवाजीवाभिगम अन्य नाम भी है। इस आगम के नव विभाग है, जिन्हें 'प्रतिपत्ति' कहते हैं। तीसरी प्रतिपत्ति के दो उद्देशक हैं। 4.पण्णवणा (प्रज्ञापना) समवायांग के उपांग रूप से ज्ञात इस उपांग में छत्तीस विभाग हैं, जिन्हें पद कहा गया है। कितनेक पदों में उद्देश्य भी है। मंगलाचरण के पंचम पद में इस उपांग को अध्ययन कहकर इसका चित्र, श्रुतरत्न और दृष्टिवाद के सार रूप में निर्देशित किया है। यह समस्त उपांगों में वृद्धकाय है। भगवती की भांति इसकी शैली भी प्रश्नोत्तर रूप से विवक्षित है। 5. सूरपण्णत्ति (सूर्यप्रज्ञप्ति) इसे 'सूरियपण्णत्ति' भी कहा गया है। यह विवाहपण्णत्ति अर्थात् भगवती का उपांग है। नंदीसूत्र में उत्कालिक के रूप में तथा पाक्षिकसूत्र में कालिक के रूप उल्लिखित इस उपांग में बीस विभाग हैं, जिन्हें प्राभृत कहा गया है। जो कि पूर्व के विभागों के नाम भी है। प्राभृत के अवान्तर विभाग को प्राभृत और प्राभृतप्राभृत के भाग को प्रतिपत्ति कहा गया है। इसमें गणित-अनुयोग का निरूपण है। 6. जंबुद्वीवपण्णत्ति (जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति) नायाधम्मकहा और मतान्तर से उवासगदसा अंग का यह उपांग माना जाता है। इसमें सात वक्षस्कार है। इसमें जैन भूगोल पर विशेष रूप से विवेचन किया गया है। 7. चन्दपण्णत्ति इसे उवासगदसा का उपांग कहा गया है। इस उपांग का विषय भी खगोल है। यह सूरपण्णति से बहुत साम्य रखता है। 8. निरयावलिया (निरयावलिका) निरय अर्थात् नरक के जीव और आवली अर्थात् श्रेणी। नारकों की श्रेणी के वर्णन स्वरूप इस ग्रन्थ को निरयावलिया सुयखंध (निरयावलिका श्रुतस्कंध) भी कहते हैं। अंतगडदसा का उपांग इसे मान्य किया है। इसे 'कप्पिया' (सं.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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