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________________ (205) वैदिक परम्परा में यह अंग शब्द वेद के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ किन्तु वेद के अध्ययन में जो सहायक ग्रन्थ हैं, उनको अंग कहा गया। ये अंग छः है-1. शिक्षा, 2. कल्प, 3. व्याकरण, 4. निरुक्त 5. छन्द 6. ज्योतिष।' ___ बौद्ध साहित्य के मूल ग्रन्थ त्रिपिटक है। उनके लिए अंग शब्द का प्रयोग न होकर बुद्ध के वचनों को नवांग और द्वादशांग कहा गया है। ये नवांग इस प्रकार हैं-1. सुत्त 2. गेय 3. वैयाकरण 4. गाथा 5. उदान 6. इतिवुत्तक 7. जातक 8. अब्भुतधम्म 9. वेदल्ल। द्वादशांग इस प्रकार है-1. सूत्र 2. गेय 3. व्याकरण 4. गाथा 5. उदान 6. अवदान 7. इतिवृत्तक 8. निदान 9. वैपुल्य 10. जातक 11 उपदेश धर्म 12 अद्भुत धर्म जैन परम्परा में द्वादशांग गणिपटक इस प्रकार हैं 1. आचार 2. सूत्रकृत् 3. स्थान 4. समवाय 5. भगवती 6. ज्ञाताधर्म कथा 7. उपासक दशा 8. अन्तकृतदशा 9. अनुत्तरौपपातिक 10. प्रश्नव्याकरण 11. विपाक 12. दृष्टिवाद। ये बारह अंग है। समवायांग और अनुयोगद्वार में तो केवल द्वादशांगी का ही निरुपण किया गया है, किन्तु नंदीसूत्र में अंगप्रविष्ट, अंगबाह्य इन भेदों के साथ अंगबाह्य के आवश्यक, आवश्यक व्यतिरिक्त, कालिक और उत्कालिक रूप में आगम की सम्पूर्ण शाखाओं का परिचय दिया गया है। अंग्र प्रविष्ट और अंगबाह्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने आगमों को दे भागों में विभक्त किया 1. अंग प्रविष्ट 2. अंग बाह्य। अंग प्रविष्ट श्रुत के तीन हेतु बताए गये हैं___ 1. जो गणधरों के द्वारा सूत्र रूप से बनाया होता है। 2. जो गणधर के द्वारा प्रश्न करने पर तीर्थङ्कर के द्वारा प्रतिपादित होता है। 3. जो शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित होने के कारण ध्रुव एवं सुदीर्घकालीन होता है। 1. पाणिनीयशिक्षा 41-12 2. अभिसमयालंकार टीका पृ. 3 3. नंदीसूत्र 56 4. विशेषावश्यक भा. 552
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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