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________________ (204) 8. कर्मप्रवाद पूर्व-ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों का प्रकृति स्थिति, अनुभाग, प्रदेश आदि भेदों की दृष्टि से विस्तृत वर्णन किया गया है। पदपरिमाण एक करोड़ छियासी हजार है। 9. प्रत्याख्यान पूर्व-भेद-प्रभेद सहित प्रत्याख्यान-त्याग का विवेचन है। पद-परिमाण चौरासी लाख है। 10. विद्यानुप्रवाद पूर्व-अनेक अतिशय-चमत्कार-युक्त विद्याओं का, उनके अनुरूप साधनों का तथा सिद्धियों का वर्णन है। पद-परिमाण एक करोड़ दस लाख है। ___11. अवन्ध्य पूर्व-वन्ध्य शब्द का अर्थ निष्फल होता है। निष्फल न होना अवन्ध्य है। इसमें निष्फल न जाने वाले शुभ-फलात्मक ज्ञान, तप, संयम आदि का तथा अशुभ फलात्मक प्रमाद आदि का निरूपण है। पद-परिमाण छब्बीस करोड़ है। 12. प्राणायु-प्रवाद पूर्व-प्राण अर्थात् पाँच इन्द्रिय, मानस आदि तीन बल, उच्छवास-निःश्वास तथा आयु का भेद प्रभेद सहित विश्लेषण है। पद-परिमाण एक करोड़ छप्पन लाख है। 13. क्रिया प्रवाद पूर्व-कायिक आदि क्रियाओं का, संयमात्मक क्रियाओं का तथा स्वच्छन्द क्रियाओं का विशाल, विपुल विवेचन है। पद-परिमाण नौ करोड़ है। ___ 14. लोक बिन्दु पूर्व-लोक में या श्रुत लोक में अक्षर के ऊपर लगे बिन्दु की तरह जो सर्वोत्तम तथा सर्वाक्षर-सन्निपात लब्धि है, उस ज्ञान का वर्णन है। पद-परिमाण साढ़े बारह करोड़ है। अङ्ग ___ जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परम्पराओं में अङ्ग' शब्द व्यवहत हुआ है। जैन परम्परा में उसका प्रयोग मुख्य आगम ग्रन्थ 'गणिपिटक' के अर्थ में हुआ है। आगम ग्रन्थों में 'दुवालसंगे गणिपिडगे' ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है। अथवा आचार प्रभृति आगम श्रुत पुरुष के अंगस्थानीय होने से भी अंग कहलाते हैं। 1. समवायांग-१३६ समवाय, प्रकीर्णक समवाय 88 2. मूलाराधना-४.५९९ विजयोदया
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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