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________________ (172) संघनगर वह संघ रूपी नगर उत्तर गुण रूपी भव्य भवनों से व्याप्त, श्रुत-शास्त्र रूप - रत्नों से पूरित, विशुद्ध सम्यक्त्व रूप स्वच्छ वाथियों से संयुक्त, अतिचार रहित मूलगुण रूप चारित्र के परकोटे से सुरक्षित है। ऐसे नगर के सदृश गुणों से विभूषित संघ है। संघचक्र संघ-चक्र में सत्तरह प्रकार के संयम रूप तुम्ब-नाभि है। बाह्म और आन्तरिक तप रूप बारह आरक हैं। सम्यक्त्व की परिधि है। यह संघचक्र भावचक्र, भाव बन्धनों का सर्वथा विच्छेद करने वाला है। इस प्रकार चक्रवर्ती के चक्र की भांति संघ है। संघ रथ इस संघरथ में अट्ठारह सहस्र शीलांगरूप ऊँची पताकाएं फहरा रही है। तप और संयम रूप अश्व जिसमें जुते हुए हैं। पाँच प्रकार के स्वाध्याय (वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा) का मंगलमय मधुरघोष जिसमें से निकल रहा है, ऐसा वह संघ रथ है। संघपद्म वह संघ पद्म कमल के समान कर्म रज रूपी जल राशि से ऊपर उठा हुआ है-अलिप्त है। जिसका आधार श्रुतरत्नमय दीर्घनाल है, पाँछ महाव्रत जिसकी सुदृढ़ कर्णिकाएँ हैं। उत्तरगुण जिसका पराग है। जो भावुक जन रूपी मधुकरोंभंवरों से घिर हुआ है। तीर्थङ्कर रूपी सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित है। श्रमणगण रूपी सहस्र पाँखुडियों वाला वह पद्मरूपी संघ है। संघचन्द्र ___ तपप्रधान, संयमरूप मृगचिह्नमय, अक्रियावाद रूप राहू के मुख से सदैव दुर्घर्ष, अतिचार रहित सम्यक्त्व रूप निर्मल चांदनी से युक्त चन्द्र रूपी संघ है। संघसूर्य सूर्यरूपी संघ परतीर्थ अर्थात् एकान्तवादी, दुर्नय का आश्रय लेने वाले परवादी रूप ग्रहों की आभा को निस्तेज करने वाले, तप रूप तेज से सदैव देदीप्यमान,
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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