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________________ (171) तात्पर्य यह है कि अनेक प्राणियों में स्थित ज्ञानादि गुणों का समुदाय समूह संघ है। संघ समूह वाचक है अतः संघ समूहरूप होने से संघ है। प्रवचन एवं तीर्थ शब्द भी संघ के ही एकार्थक है अर्थात् संघ की ही पर्याय है। प्रवचन एवं तीर्थ शब्द संघ के ही अर्थक है, संघ से अभिन्न है। यद्यपि प्रकृष्ट या प्रशस्त वचन को प्रवचन, जो कि द्वादशाङ्गी रूप है कहा जाता है तथा जिससे भवोदधितिरा जाये उसे तीर्थ कहते हैं। तथापि आधार-आधेय में अभेद की विवक्षा होने से प्रवचन और तीर्थ को भी संघ कहते हैं। इस प्रकार गुरुतर-भाव से इसको नमस्कार करते हैं। गुरुतर से तात्पर्य है गुणात्मक रूप होने से। अथवा गुरुत्व के रूप गौरव होने से संघ को नमस्कार करते हैं।' ___ संघ का गौरवास्पद वर्णन करते हुए संघ का माहात्म्य दर्शाया है कि 'तित्थयराणंतरो संघो२ अर्थात तीर्थंकर के अनन्तर संघ है। तीर्थंकर के द्वितीयस्थानवर्ती संघ है। अथवा तीर्थङ्कर से विशेष अन्तर अविद्यमान होने से संघ तीर्थङ्कर से अनन्तर है। अतः यह संघ तीर्थङ्कर के तुल्य पूजनीय है। यहाँ तक संघ की महत्ता का गुणगान किया गया है कि तीर्थङ्कर परमात्मा का तीर्थङ्करत्व भी संघपूर्वक ही है। (संघपूर्वक हि तीर्थकरस्य तीर्थकरत्वं) इससे विदित होता है कि संघ का स्थान सर्वोपरि है। इससे यही फलित होता है कि संघ तीर्थं है। महानिशीथ सूत्र में पुनः इसे स्पष्ट किया है यहाँ तीर्थ और संघ में अभेद बताया है तथा ये एकार्थक है, यह स्पष्ट होता है। संघ का माहात्म्य जैन आगम ग्रंथों में संघ की महिमा का गुणगान मुक्त कण्ठ से किया गया है। नन्दी सूत्र में संघ को नगर, चक्र, रथ, पद्म, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, मेरू आदि रूपकों से आख्यान किया है। 1. पंचाशक टीका 8.39 2. पंचा. 8.38 3. पंचा टीका 8.38 4. वही 8.38 5. पंचा 8.40 6. महा. 4. अध्य. 7. नंदीसूत्र गा. 4.19
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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