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________________ 172 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी (2) अवमौदर्य तप जितनी आहार मात्रा है, उससे कम खाना-अवमौदर्य तप है। इसे ऊनोदरी तपभी कहा जाता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से यह तप पांच प्रकार का होता है(क) द्रव्य ऊनोदरी : जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम से कम एक ग्रास कम कर देना द्रव्य ऊनोदरी है। (ख) क्षेत्र ऊनोदरी : क्षेत्र ऊनोदरी दो प्रकार की कही गई है-(१)ग्राम,नगर, राजधानी,गृह आदि के क्षेत्र की सीमा निश्चित करके भिक्षा लेना और (2) एक विशेष आकार के क्षेत्र से ही भिक्षा लेना। दृष्टान्त रूप में इसके छह भेद किए गए हैं(१) पेटा-पेटिका की तरह आकार वाले घरों से भिक्षा लेना। (2) अर्धपेटा-अर्धपेटिका की तरह आकार वाले घरों से भिक्षा लेना। (3) गोमूत्रिका-गोमूत्र की तरह से वक्राकार जाते हुए घरों से भिक्षा लेना। (4) पतंगवीथिका-बीच-बीच में कुछ घर छोड़कर भिक्षा लेना। (5) शम्बूकावर्ता-शंख की तरह चक्राकार जाकर भिक्षा लेना। (6) आयत गत्वा प्रत्यागता-पहले बिना भिक्षा लिए दूर तक चले जाना, फिर लौटते हुए भिक्षा लेना ।इस प्रकार क्षेत्र को सीमित कर लिया जाता है। (ग) काल ऊनोदरी: दिन के चार पहरों में भिक्षा का जो निश्चित समय तीसरा पहर है, तदनुसार भिक्षा के लिए जाना अथवा निश्चित काल के प्रमाण को कुछ कम कर देना काल ऊनोदरी है। (घ) भाव ऊनोदरी : भाव प्रधान होने से इसे भाव ऊनोदरी कहते हैं। इसमें भिक्षार्थ जाते समय ऐसा नियम बना लिया जाता है कि स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अनलंकृत, युवा अथवा बालक, सौम्याकृति अथवा अन्य किसी विशेष प्रकार के भाव से युक्त दाता से ही भिक्षा ग्रहण करूंगा अन्यथा नहीं। इस प्रकार से कम भिक्षा मिलने की सम्भावना रहती है। अतः इस विधि से भी तप होता है। 1. अवमौदर्यमेकग्रासादिरल्पाहारः / भावपाहुड़, गा०टी०,७८,पृ०३५३ 2. दे०-उ० 30.14-24
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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