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________________ 159 उपाध्याय परमेष्ठी ऊँचा रखते हुए प्रतिलेखन करना उड्ढ प्रतिलेखना है। (२)थिरं (स्थिरम्) वस्त्रको दृढ़तासे स्थिर रखते हुए प्रतिलेखन करना थिर प्रतिलेखना है। (३)अतुरियं (अत्वरितम्) उपयोगयुक्त होकर जल्दीन करना अतुरिय प्रतिलेखना है। (4) पडिलेह (प्रतिलेख) : वस्त्र के तीन भाग करके उसे दोनों ओर से अच्छी तरह देखना प्रतिलेख प्रतिलेखना है। (5) पप्पफोड (प्रस्फोट) : देखने के बाद यतनापूर्वक धीरेधीरे झड़काना पप्फोड प्रतिलेखना है। (6) पमज्जेज्जा (प्रमार्जन) : झड़काने के बाद वस्त्र आदि पर चिपके हुए जीवको यतनापूर्वक प्रमार्जन कर हाथ में लेना और फिर उसे एकान्त में छोड़ना पमज्जेज्जा प्रतिलेखना है। (आ) अप्रमाद प्रतिलेखना के छह भेद' : (१)अनर्तितःप्रतिलेखनाकरतेसमयशरीर और वस्त्रको नचाना नहीं चाहिए। (2) अवलित:प्रतिलेखना करते समय वस्त्र कहीं से मुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए तथा साधु को भी प्रतिलेखना करते समय सीधे बैठना चाहिए। (3) अननुबन्धी :प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को झटकाना नहीं चाहिए। (4) अमोसली: प्रतिलेखना करते समय,धान्य आदि कूटने के समय ऊपर, नीचे या तिरछे लगने वाले मूसल की तरह वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिरछे दीवार आदि से नहीं लगाना चाहिए। (5) षट्पुरिमनवस्फोटका : प्रतिलेखना में छ: पुरिम और नव खोड़ करने चाहिए। वस्त्र के दोनों हिस्सों को तीन-तीन बार टटोलना छ: पुरिम हैं तथा वस्त्र को तीन-तीन बार पोंछ कर उसका तीन बार शोधन करना नव खोड़ है। (6) पाणिप्राणविशोधन : वस्त्र आदि पर चलता हुआ कोई जीव दिखाई दे तो यतनापूर्वक हाथ से उसका शोधन करना चाहिए। 1. अणच्चावियं अवलियं अणाणुबन्धिं अमोसलिं चेव। छप्पुरिमा नवखोडा पाणीपाणविसोहणं / / उ० 26.25
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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