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________________ xvii तुलनात्मक रूप में हुआ है जिससे ग्रन्थ की उपादेयता और भी अधिक बढ़ गयी है / डॉ. जगमहेन्द्र राणा ने पञ्च परमेष्ठी का जो विस्तृत एवं प्रामाणिक विवेचन ग्रन्थ के माध्यम से किया है वह अत्युत्तम एवं प्रशंसनीय है / उनके इस श्रमसाध्य प्रयास के लिए उन्हें हार्दिक साधुवाद / यह ग्रंथ विद्वानों के लिए तो उपयोगी है ही, जिज्ञासु भक्त सहृदयों के लिए भी उतना ही उपयोगी सिद्ध होगा इसलिए यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि यह समाज में ससम्मान पढ़ा जावेगा। ___ एक बात और है वह यह है कि इस ग्रंथ के निर्देशक डॉ. धर्मचन्द्र जैन प्रोफेसर कुरुक्षेत्र भी भक्त हृदय एवं सद्ग्रहस्थ हैं। इसका प्रकाशन भी एक महान् सन्त पंजाब प्रवर्तक, पण्डित रत्न पूज्य श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज के शताब्दी समारोह वर्ष में उन्हीं की स्मृति में किया जा रहा है। इससे भी प्रस्तुत ग्रंथ की उपयोगिता और भी अधिक बढ़ जाती है। मैं इसके प्रकाशक युवा मनीषि मुनि श्री सुभाष जी महाराज का भी साधुवाद करता हूँ और प्रकृत उपादेय ग्रंथ के प्रचार-प्रसार की मंगल कामना करता हूँ। डॉ० सुव्रतमुनि शास्त्री एस. एस. जैन सभा बरेटा मण्डी मानसा (पंजाब) महावीर निर्वाण (दीवाली) 23 अक्टूबर 1995
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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