SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी २.दूसरे,अनन्त ज्ञान-दर्शन-सुख और बल रूपअनन्त-चतुष्टय की अपेक्षा भीअरहन्त और सिद्ध में किञ्चित् भी भेद नहीं है क्योंकि ये सभी दोनों में समानरूप से ही पाए जाते हैं। यह बात भी यहां निर्विवाद सिद्ध है कि 'जो धर्मोपदेश अरहन्त देव ने दिया है, वही धर्मोपदेश सिद्धभगवान् का भी है, कारण कि केवलज्ञान कीअपेक्षा से अरहन्त एवं सिद्ध परमात्मा में कोई भिनता नहीं है। 3. तीसरे, यद्यपिअरहन्त देव को अभी मोक्ष-गमन करना अपेक्षित है फिर भी जब वे मोक्ष-गमन करते हैं तब उनकी 'अरहंत' संज्ञा समाप्त होकर सिद्ध संज्ञा हो जाती है। अतः यह पूर्वोक्त सन्देश एक प्रकार से सिद्ध परमात्मा का ही है ।आगम में भी ऐसा बतलाया गया है कि यह कथन सिद्धों का है अर्थात् सिद्ध ऐसा बोलते हैं।' इस प्रकार के शास्त्रोक्त वचनों से यह निश्चय हो जाता है कि अरहन्त देवों को ही समान गुण होने से (अपेक्षा दृष्टि से) सिद्ध माना गया है। (आ) भिन्नत्व : गुणों आदि के समान होने पर भी इन दोनों में मौलिक भेद यही है कि (१)अरहन्त देव शरीरधारी होते हैं जबकि सिद्ध भगवान् अशरीरी। 'केवलज्ञान के द्वारा सब पदार्थों को जान लेने वाले, सशरीरीअरहन्त व सर्वोत्तम सुख को प्राप्त कर लेने वाले तथा ज्ञानमय शरीर वाले सिद्ध परमात्मा हैं। (2) अरहन्त के चार घातिया कर्म ही नष्ट हुए होते हैं जबकि सिद्ध भगवान् के आठों कर्म क्षीण हो चुके होते हैं / अरहन्तों को अवशिष्ट चार अघातिया कर्मों के नाश होने तक संसार में रुकना होता है और वे विश्व को अपना दिव्य उपदेश देते हैं जबकि सिद्ध भगवान् सदैव निजानन्द में ही लीन रहते हैं। (3) सिद्ध पूर्णत्व को प्राप्त हुए होते हैं, इसलिए वे वृद्धि और हास दोनों से ऊपर उठ चुके हैं जबकि अरहन्त को अभी मोक्ष में प्रविष्ट सत्थेण सुतिक्खेण वि, छेतुं भेत्तुं व जं किर न सक्का। तं परमाणु सिद्धा, वदंति आदिं पमाणाणं / / भग० 6.134 सरीरा अरहंता केवल-णाणेणमुणिय-सवलत्था। णाण-सरीरा सिद्धा सव्वुत्तम-सुक्ख-संपत्ता।। कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 168
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy