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________________ 94 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी बोधि प्राप्त कर सिद्ध बनते हैं, वे स्वयं बुद्ध सिद्ध होते हैं | (6) प्रत्येकबुद्धसिद्ध :जो गुरु उपदेश के बिना किसी बाह्य निमित अनित्य आदि भावना से प्रबुद्ध होकर सिद्ध होते हैं, वे प्रत्येक बुद्ध सिद्ध हैं। (7) बद्धबोधितसिद्ध :जो आचार्य आदि के द्वारा बोधि प्राप्त कर सिद्ध होते हैं, वे बुद्ध बोधित सिद्ध हैं / (E) स्त्रीलिंग सिद्ध जो स्त्री शरीर में सिद्ध होते हैं वे स्त्रलिंग सिद्ध हैं। (6) पुरुषलिंग सिद्ध :जो पुरुष शरीर में सिद्ध होते हैं वे पुरुषलिंग सिद्ध हैं। (१०)नपुंसकलिंगसिद्धःजो नपुंसकशरीरसे सिद्ध होते हैं वे नपुंसकलिंग सिद्ध हैं / (11) स्वलिंग सिद्ध :जो जैन सम्प्रदाय का साधुवेश रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका आदि धारण करके सिद्ध होते हैं, वे स्वलिंग सिद्ध हैं। (12) अन्यलिङग सिद्ध :किसी जैनेतर सम्प्रदाय के वेश में जो सिद्ध होत हैं वे अन्यलिंग सिद्ध हैं / (13) गृहिलिङ्ग सिद्ध : गृहस्थ के वेश में ही परिणाम विशुद्धि प्राप्त कर जो सिद्ध होते हैं, वे गृहिलिङ्ग सिद्ध हैं / (14) एक सिद्ध :जो अपने सिद्ध होने के समय में अकेले सिद्ध हुए हों वे एक सिद्ध कहलाते हैं। (15) अनेक सिद्ध :जो अपने सिद्ध होने के समय में एक साथ दो से लेकर उत्कृष्टतः 108 तक सिद्ध हैं वे अनेक सिद्ध कहलाते हैं / इस प्रकार जैनधर्म की यह स्पष्ट धोषणा है कि संसार का कोई भी मनुष्य भले ही वह किसी भी जाति, धर्म-सम्प्रदाय, देश और रूप का हो, वीतरागता आदि आध्यात्कि गुणों का विकास करके सिद्ध पद को प्राप्त कर सकता है। (ङ) सिद्ध-भक्ति : आचार्य कुन्दकुन्द सिद्धों के परम भक्त थे। उनका दृढ़ विश्वास है कि सिद्धों की भक्ति से परमशुद्ध सम्यक् ज्ञान प्राप्त होता है। उनकी भक्ति करने 1. जरमरणजम्मरहिया ते सिद्धा मम सुभत्तिजुत्तस्स। देंतु वरणाणलाहं बुहयणपरिपत्थणं परमसुद्धं / / दशभक्ति, पृ०५८
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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