SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 71 अरहन्त परमेष्ठी तत्वार्थाधिगमसूत्र में अरहन्त की पूजा का फल और उसकीआवश्यकता पर बल देते हुए बतलाया गया है कि 'अरहन्तदेव का पूजन करने से रागद्वेष आदि मानसिक विकार दूर हो जाते हैं और चित्त निर्मल हो जाता है, चित्त के निर्विकार होने से अच्छी प्रकार समाधि लगती है जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः अरहन्त का पूजन करना न्यायोचित है क्योंकि मोक्ष की प्राप्ति ही प्राणी का मुख्य उद्देश्य है। भगवती आराधना में अरहन्त-नमस्कार पर विशेष बल देते हुए कहा गया है कि 'भरते समय यदि एक बार भीअरहन्त को नमस्कार किया जाय तो उसे जिनागम में संसार का उच्छेद करने में समर्थ कहा है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अरहन्त भगवान् की उपासना करने से महान फल प्राप्त होता है। उनके स्तवन से मानसिक पवित्रता प्राप्त होती है जिससे प्राणी के मानसिक दृष्टिकोण में परिवर्तन आ जाता है और उसके परिणामस्वरूपमोह-विच्छेदहो जाता है। तत्पश्चात् प्राणी वीतरागता के पथ पर अग्रसर होता हुआ सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्त हो जाता है और उसे प्रशस्तमंगल की प्राप्ति हो जाती है। रागद्वेष आदिदुष्प्रवृत्तियों के पूर्णतया नष्ट हो जाने पर उसे निःश्रेयस की प्राप्ति होती है। अभ्यर्चनादर्हतां मनः प्रसादस्ततः समाधिश्च। तस्मादपि निःश्रेयसमतो हि तत्पूजनं न्याय्यम् / / तत्त्वर्थाधिगमसूत्र, सम्बन्धका०८ 2. अरहंतणमोक्कारो एक्को वि हविज्ज जो मरणकाले। सो जिणवयणे दिट्ठो संसारुच्छेदणसमत्थो / / भग. आ०७५४
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy