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________________ ( 121 ) और सजीवन विविध वृक्षावलीवाला है। यह शत्रुजयगिरि का पांचवा शिखर कहलाता है, जो सिद्धाचल के समान प्रायः शाश्वत है। 1 कोट, 2 रहनेमि, 3 अंबा, 4 गोरख, 5 दत्तात्रयी, 6 रेणुका और 7 कालिका; ये सात शिखर इसके टोंक हैं। जैनशास्त्रानुसार प्रथमारक में इसका कैलास, द्वितीयारक में उज्जयन्त, तृतीयारक में रैवत, तुर्यारक में वर्णगिरि, पंचमारक में गिरनार और षष्ठारक में नन्दभद्र नाम, तथा पहले आरे में 36 योजन, दूसरे में 20, तीसरे में 16, चौथे में 10, पांचवें में 2 योजन और छठे में 100 धनुष का प्रमाण समझना चाहिये / इसके पूर्व में उदयंती, दक्षिण में उज्जयंती, पश्चिम में सुवर्णरेखा और उत्तर में दिव्यलोला ये चार नदियाँ हैं / आधुनिक इतिहासज्ञों के मत से इसका विस्तार ऊंचाई में 3666 फुद, लम्बाई में 15 माइल और पहोलाई में 4 माईल का है / इसके ऊपर चढ़ने के लिये तलाटी से कोट, पांचवीं टोंक और सहसावन तक पत्थर की मजबूत सीडीयाँ बनी हुई हैं / जूनागढ के वाघेश्वरी दरबाजा से वाघेश्वरीमाता का देवल 1208 फुट, अशोकलेखभवन 2733 फुद, दामोदरकुंड 5033, भवेश्वरदेवल 11133 फुट, चडानीवाव 12043 (25. माईल ), मालीपरब 19028, ऊपरकोट (नेमनाथटोंक) 22043, अंबाटेकरी 24243, गोरखटेकरी
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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