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________________ ( 175) सम्वच्छुभे त्रयस्त्रिंशन्नन्दैके विक्रमाद्वरे / माधमासे सिते पक्षे, चन्द्रे प्रतिपदा तिथौ // 1 // जालन्धरे गढे श्रीमान् , श्रीयशस्वन्तसिंहराट्। तेजसा घुमणिः साक्षात् , खण्डयामास यो रिपून // 2 // विजयसिंहश्च किल्लादारधर्मी महाबली / तस्मिन्नवसरे संधैर्जीर्णोद्धारश्च कारितः // 3 // चैत्यं चतुर्मुखं सूरिराजेन्द्रेण प्रतिष्ठितम् / एवं श्रीपार्श्वचैत्येऽपि, प्रतिष्ठा कारिता वरा // 4 // अोसवंशे निहालस्य, चोधरीकानुगस्य च / सुतप्रतापमल्लेन, प्रतिमा स्थापिता शुभा // 5 // श्रीऋषभजिनप्रसादादुल्लिखितमिति / तीसरा मन्दिर जो छोटा पर रमणीय सिखरवाला है और इसमें श्रीपार्श्वनाथजी की सुन्दर प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा भी महाराज श्री राजेन्द्रसूरिजी के उपदेश से हुई है, ऐसा चोमुखजी के ऊपर दिये हुए शिलालेख से जाहिर होता है / ____इनके अलावा यहाँ एक महादेव का मंदिर भी है, जो कीर्तिपाल चौहान की पुत्री रूदलदेवी का वनवाया हुआ है। इसी के पिछाडी के भाग में उसी समय का एक जलकुंड है और इससे. आगे वीस कदम पर एक छोटा बगीचा है, जो सार-संभाल न होने के वजह से लुप्त प्राय हो रहा है। चोमुखजी से बसि कदम पर तीन राज-महल मजबूत और जूने हैं जो समरसिंह
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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