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________________ (517) नवमाँ गुण / मातापित्रोश्व पूजकः, अर्थात् त्रिकाल माता, पिता की 'पूना वंदना करना मार्गानुसारी का नवमाँ गुण है। माता पिता को, परलोक में लाभ पहुंचानेवाली क्रिया में लगाना, देवता के समान उनके आगे उत्तम फल भोजनादि रखना। उनकी इच्छा. नुकूल वे खालें उसके पश्चात् आप खाना / उनकी इच्छानुसार प्रत्येक व्यवहार करना / ऐमा करना ही मनुष्यका कर्तव्य है। इनके मनुष्य के ऊपर अनेक उपकार होते हैं। पिता की अपेक्षा माता का विशेष उपकार होता है / इसे पिता के पहिले माता का नाम रक्खा गया है / कहा है कि: उगध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता / सहस्रं तु पितॄन्माता गौरवेणातिरिच्यते // 1 // . भावार्थ-दश उपाध्यायों की अपेक्षा एक आचार्य, सौ आचार्यों की अपेक्षा एक पिता और हमार पिताओं की अपेक्षा एक माता विशेष पूज्य होती है। इस भाँति पूज्य माता पिता का जो पूनक होता है वही धर्म सेवन के योग्य हो सकता है। दशवाँ गुण / त्यजन्नुपप्लुतस्थानं / अर्थात् उपद्रवाले स्थान का परित्याग करना, मार्गानुसाती का दमवाँ गुण है / स्वचक्र-पाचक्र, दुर्भिक्ष, प्लेग, मरी, ईति, भीति और जनविरोध आदि उपद्रव हैं।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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