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________________ घर पुत्र का जन्म हुआ है। क्या यह बात सत्य है ?" राजाने स्वीकार किया। तब नारदजीने कहा:-" उस बालक को यहाँ मँगवाइए / ताकी उसे देखें और अपनी उत्कंठा को पुर्ण करूँ।" राजाने कहा:-" नारदजी महाराज ! आजका ही जन्मा हुआ बच्चा यहाँ कैसे लाया जा सकता है ! आप ब्रह्मचारी हैं; ऋषि हैं। आपके लिए अन्तःपुर में जाने की रोक नहीं है। आप सानंद अंदर पधारिए और बालक को दर्शन दीजिए / नारदजी अन्तःपुर में गये। दासी नवजात शिशुको नारदजी के पास लाई / नारदजी को देखते ही बालक बोल उठा:-" नारदनी ! क्या अब भी आप सत्संग का फल न देख सके ? " नारदनी उसी दिनके जन्मे और अपने हृदय की बात को कहते हुए बालक की बातें सुनकर चकित हुए। बालकने फिर कहाः" महाराज नरक का कीड़ा मैं ही हूँ। आपके दर्शन से-आपके सत्संग से मैं पक्षी हुआ / वहाँ से मरकर बछड़ा हुआ और वहाँ भी आपके समान बालब्रह्मचारी के दर्शन हुए इससे मरकर मैं राजा का पुत्र हुआ हूँ। इससे बढ़कर सत्संग का फल और विशेष क्या हो सकता है ? " नारदनी बहुत प्रसन्न होकर अपने स्थान को गये।" __ अभिप्राय कहने का यह है कि, संत पुरुषों का समागम मनुष्यों को बहुत ही लाम पहुँचाता है। इसलिए इस गुण को अवश्य धारण करना चाहिए /
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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